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Showing posts from October, 2022

Why is the festival of Gopashtami celebrated?

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क्यों मनाया जाता है गोपाष्टमी का पर्व गोपाष्टमी पर्व मनाए जाने के पीछे एक मान्यता है। ये मान्यता आज से नहीं बल्कि प्राचीन काल से है। द्वापर युग में भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी कथाओं से ये मान्यता जुड़ी है। भगवान श्री कृष्ण गायों से अत्यधिक प्रेम किया करते थे। उनके छोटे होने के कारण उनके माता-पिता नंदबाबा और यशोदा उन्हें गाय चराने से मना करते थे। लेकिन भगवान श्री कृष्ण की इच्छा थी, कि वह भी जंगलों में जा करके गायों को चराये और सखाओं के साथ खेलें। इसको लेकर कि वे रोज नंद बाबा से पूछते थे कि वह गाय चराने कब जाएंगे। इस पर नंद बाबा कहते कि अति शीघ्र ही वह पंडित से मुहूर्त निकलवा कर आएंगे। आखिरकार 1 दिन भगवान श्री कृष्ण ने जिद कर डाली और नंद बाबा के साथ ब्राह्मण के घर पहुंच गए और उन्होंने मुहूर्त पूछा जहां स्वयं श्रीकृष्ण खड़े हों वहां मुहूर्त की आवश्यकता क्या? कैसे शुरु हुआ गोपाष्टमी पर्व मनाना ब्राह्मण ने कहा कि आज का शुभ मुहूर्त निकला है। इसके बाद 1 वर्ष तक कोई मुहूर्त नहीं है। ब्राह्मण के बताने के तुरंत बाद ही नंद बाबा द्वारा यह कह दिया गया कि वह अब गाय चराने जा सकते हैं, आदे

Effect of retrograde Mercury

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बुध का वक्री एवं अस्त होना क्या है ? वक्री ग्रहों की दशा में देशाटन, व्यसन एवं अत्यधिक भागदौड़ का योग बनता है। कुंडली में में जो ग्रह वक्री होता है वह अपनी दशा एवं अंतरदशा में प्रभावशाली फल प्रदान करने वाला बनता है। बुध ग्रह के वक्री होने पर मिलेजुले प्रभावों को देखा जा सकता है। बुध के शुभ या अशुभ फल का प्रभाव उसके अन्य ग्रहों के साथ संबंधों एवं अन्य तथ्यों के आधार पर किया जा सकता है। किसी जातक की कुंडली में सामान्य रूप से शुभ फल देने वाले बुध वक्री होने की स्थिति में उस कुंडली में शुभ फल प्रदान करते हैं और कुंडली में सामान्य रूप से अशुभ फल देने वाले बुध वक्री होने की स्थिति में अपनी अशुभता में वृद्धि कर देते हैं।   वक्री होने से बुध ग्रह में अंतर को आसानी से समझा जा सकता है। बुध के वक्री होने पर जातक के व्यवहार एवं उसकी बौद्धिकता पर प्रभाव को देखा जा सकता है क्योंकि बुध बुद्धि का कारक है इस कारण से वक्री बुध के प्रभाव स्वरुप उसके विचारों में भिन्नता देखी जा सकती है, विचारों में बदलाव को देखा जा सकता है। जातक की बातचीत करने की क्षमता तथा निर्णय लेने की क्षमता दोनों ही में अ

What is Malavya Yoga ?

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मालव्य राजयोग क्या होता है मालव्य योग : यह योग शुक्र से संबंधित है। जिस भी जातक की कुंडली में शुक्र लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित है अर्थात शुक्र यदि कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में वृष, तुला अथवा मीन राशि में स्थित है तो कुंडली में मालव्य योग बनता है। असर : मालव्य योग का जातक सौंदर्य और कला प्रेमी होता है। काव्य, गीत, संगीत, फिल्म, कला और इसी तरह के कार्यों में वह सफलता अर्जित करता है। उसमें साहस, पराक्रम, शारीरिक बल, तर्क करने की क्षमता तथा समयानुसार उचित निर्णय लेने की क्षमता भी गजब की होती है। ज्योतिष में पंचमहापुरुष योग की चर्चा बहुत होती है। पंच मतलब 5, महा मतलब महान और पुरुष मतलब सक्षम व्यक्ति। पंच में से कोई भी एक योग होता है तो व्यक्ति सक्षम हो जाता है और उसे जीवन में संघर्ष नहीं करना होता है। आओ जानते हैं कि यह पंच महापुरुष योग से एक मालव्य योग के बारे में संक्षिप्त जानकारी। ज्योतिष ग्रंथ बृहत् पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार मालव्य योग में जन्मा व्यक्ति आकर्षक होंठ वाला, चन्द्र के समान कांति वाला, गौरवर्ण, मध्यम क

Vastu defect is also caused by making toilet in the wrong place

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गलत स्थान पर टॉयलेट बनाने से भी होता है वास्तु दोष वास्तुशास्त्र में घर में शौचालय या टॉयलेट के लिए भी उचित स्थान नि​र्धारित किया गया है. यदि वह नियत स्थान पर न हो, तो घर में वास्तु दोष उत्पन्न हो सकता है. ​इसका नकारात्मक प्रभाव परिवार के सदस्यों पर देखने को मिल सकता है. शौचालय में सीट, नल आदि कहां पर होना चाहिए,  जानते हैं शौचालय से जुड़े वास्तु  की महत्वपूर्ण बातों के बारे में. घर में अगर वास्तु दोष हो तो एक के बाद एक कई समस्याएं घरने लगती हैं और फिर इसका प्रभाव जीवन के हर पहलू पर पड़ता है. लेकिन वास्तु शास्त्र एक ऐसा शास्त्र है जिसे अमल में लाकर इन सभी परेशानियों से निजात पाई जा सकती है और घर का वास्तु दोष दूर किया जा सकता है. अगर आपके घर में हर वक्त कोई ना कोई बीमार रहता है या फिर फिर आपका परिवार आर्थिक तंगी का सामना कर रहा है तो यकीनन आपके घर में शौचालय से जुड़ा वास्तु दोष हो सकता है. इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखकर इस दोष से मुक्ति पाई जा सकती है.  दिशा है महत्वपूर्ण वास्तु शास्त्र दिशाओं का शास्त्र है जिसमें हर चीज़ के लिए उपयुक्त दिशा बताई गई है. ठीक उसी तरह घर में

Mars Saturn conjunction in horoscope

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जन्मकुंडली में मंगल शनि युति शनि मंगल युति को विस्फोटक योग, द्वंद्व योग, संघर्ष योग के नाम से जाना जाता है .  वैदिक ज्योतिष में शनि और मंगल को एक-दूसरे के शत्रु ग्रह माना गया हैं. जिस जातक की कुंडली में ये दोनों ग्रह एक ही भाव में होते हैं या एक दूसरे से सप्तम भाव में होते है उन्हें अपने जीवन में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है.  दूसरी तरफ ये जातक को अच्छा योद्धा, बनने अच्छा तकनीकी ज्ञान देने, कर्मठ बनने में सहायक है.ऐसा जातक हार में हार ना मानने की संकल्प शक्ति होती है. यह युति अच्छी शिक्षा के माध्यम से जातक को डॉक्टर इंजिनियर बनाने में सहायक है. मैकेनिकल और निर्माण संबंधी योग्यता देने में सहायक है . इस युति को द्वंद्व योग संघर्ष योग के नाम से भी जाना जाता है. द्वंद्व का अर्थ है लड़ाई , शनि मंगल का योग कुंडली में करियर के लिए संघर्ष देने वाला होता है.ये संघर्ष कुण्डली में मंगल शनि किस भाव में हैं,इस पर निर्भर और कुण्डली में अन्य योग पर निर्भर करता है. एक ही घर में बैठें हो ये दो दुश्मन तो बार बार दुर्घटना का शिकार होते हैं लोग ज्योतिष शास्त्र में मंगल औऱ शनि को एक दूस

Know the mathematics of friendship from the horoscope

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कुंडली से जानें दोस्ती का गणित ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक प्राणी किसी न किसी ग्रह, राशि व लग्न के प्रभाव में होता है और मित्रता जातक की कुंडली तय करती है। ज्योतिष के अनुसार नौ ग्रहों में पांच प्रकार की मित्रता होती है। परम मित्र, मित्र, शत्रु, अधिशत्रु एवं ग्रहों की स्थिति के अनुसार तात्कालिक मैत्री। कर्क , वृश्चिक व मीन राशियां जल तत्व प्रधान हैं। ये धीर-गंभीर व विशाल हृदया होती हैं। ज्योतिष के मुताबिक एक ही तत्व की राशियों में गहरी मित्रता होती है। पृथ्वी, जल तत्त्व और अग्नि, वायु तत्त्वों वाले जातकों की भी पटरी अच्छी बैठती है। अग्नि व वायु तत्त्व वालों की मित्रता भी होती है। लेकिन पृथ्वी, अग्नि तत्त्व, जल तथा अग्नि तत्व एवं जल तथा वायु तत्त्वों वाले जातकों में शत्रुता के संबंध होते हैं।  तत्व के अलावा राशियों के स्वभाव पर भी मित्रता का असर होता है। राशियों के हिसाब से देखें तो स्वयं की राशि के अलावा मेष, सिंह व धनु राशि वालों की मित्रता मिथुन, तुला व कुंभ राशि वाले लोगों से होती है। वृष, कन्या व मकर राशि वाले लोगों की मित्रता कर्क, वृश्चिक व मीन राशि वाले लोगों स

Abhijeet Muhurta

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अभिजीत मुहूर्त में सिद्ध होते हैं कार्य, मिलती है सफलता शास्त्रों का ज्योतिष में रुचि रखने वाले लोग अक्सर अभिजीत मुहूर्त के बारे में सुनते पढ़ते रहते हैं।  हमारे शास्त्रों के अनुसार एक दिन में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कुल 30  प्रकार के विभिन्न मूहूर्त होते हैं। इनमें से अभिजीत मुहूर्त  को सभी प्रकार के मुहूर्तो में अत्यंत शुभ और फलदायी मानी जाता है। अभिजीत का मतलब होता है विेजेता और मुहूर्त का अर्थ होता है - समय। जिसका अर्थ ये हुआ कि अभिजीत मुहूर्त में किए जाने वाले कार्यों में न केवल सफलता मिलती है बल्कि इस मुहूर्त में किया गया हर काम शुभ फल भी प्रदान करता है। यही कारण सनातन धर्म में हर तरह के धार्मिक अनुष्ठान व कार्य आदि को करने के लिए अभिजीत मुहूर्त का समय दिया जाता है, क्योंकि इसके परिणाण हमेशा सकारात्मक होते हैं।  इसकी विशिष्‍टता यह भी है कि बिना विशेष योग के भी इस मुहूर्त में किया गया कार्य फलदायी होता है। इस समय में कोई भी कार्य करने पर विजय प्राप्त होती है। प्रभु राम जी के जन्म से भी अभिजीत मुहूर्त का खास संबंध है। तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में भगवान श्रीराम के

Choghadiya Meaning

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पंचांग में मुहूर्त और चौघड़िया का क्या महत्व है? चौघड़िया अर्थ चौघड़िया का अर्थ चार घड़ियाल है जो 96 मिनट का है। हिंदी शब्दों से व्युत्पन्न, चौगड़िया में "चौ", चार का अर्थ है और "घडी" का अर्थ है समय अवधि। इसे "चतुरशिका मुहूर्त" के रूप में भी जाना जाता है। ज्योतिषीय दृष्टि से सात अच्छे और बुरे चौगड़िया हैं। वो हैं, 1 . उदवेग चौघड़िया - चौघड़िया में, उद्वेग पहला मुहूर्त है जो कि पृथ्वी ग्रह पर शासित है। इस घडी को अशुभ माना जाता है। हालाकि, उदवेग में सरकार से संबंधित कार्य करने से सुखद परिणाम मिलते हैं। 2. लाभ चौघड़िया - लाभ दूसरा चौगड़िया है जो बुध ग्रह द्वारा शासित है। यह अवधि शुभ मानी जाती है . और किसी भी व्यावसायिक या शैक्षिक संबंधित कार्य को शुरू करने के लिए बहुत उपयुक्त है। 3. चार चौगड़िया - शुक्र द्वारा शासित, चार तीसरा चौगड़िया है जिसे यात्रा के उद्देश्य से शुभ मुहूर्त माना जाता है। 4. रोग चौघड़िया - चौघड़िया का चौथा मुहूर्त, रोग ग्रह मंगल द्वारा शासित है। इस चौथे मुहूर्त में व्यक्ति को कोई भी शुभ काम शुरू नहीं करना चाहिए और न ही चिक