Why is the festival of Gopashtami celebrated?


क्यों मनाया जाता है गोपाष्टमी का पर्व

गोपाष्टमी पर्व मनाए जाने के पीछे एक मान्यता है। ये मान्यता आज से नहीं बल्कि प्राचीन काल से है। द्वापर युग में भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी कथाओं से ये मान्यता जुड़ी है। भगवान श्री कृष्ण गायों से अत्यधिक प्रेम किया करते थे। उनके छोटे होने के कारण उनके माता-पिता नंदबाबा और यशोदा उन्हें गाय चराने से मना करते थे। लेकिन भगवान श्री कृष्ण की इच्छा थी, कि वह भी जंगलों में जा करके गायों को चराये और सखाओं के साथ खेलें। इसको लेकर कि वे रोज नंद बाबा से पूछते थे कि वह गाय चराने कब जाएंगे। इस पर नंद बाबा कहते कि अति शीघ्र ही वह पंडित से मुहूर्त निकलवा कर आएंगे। आखिरकार 1 दिन भगवान श्री कृष्ण ने जिद कर डाली और नंद बाबा के साथ ब्राह्मण के घर पहुंच गए और उन्होंने मुहूर्त पूछा जहां स्वयं श्रीकृष्ण खड़े हों वहां मुहूर्त की आवश्यकता क्या?

कैसे शुरु हुआ गोपाष्टमी पर्व मनाना

ब्राह्मण ने कहा कि आज का शुभ मुहूर्त निकला है। इसके बाद 1 वर्ष तक कोई मुहूर्त नहीं है। ब्राह्मण के बताने के तुरंत बाद ही नंद बाबा द्वारा यह कह दिया गया कि वह अब गाय चराने जा सकते हैं, आदेश मिलने के बाद भगवान श्री कृष्ण तुरंत गायों को सजाने संवारने लगे और माता यशोदा ने भी उनका साथ दिया और वे जंगलों में गायों को घुमाने के लिए ले गए। तभी से गोपाष्टमी का पर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ गोपालकों और कृष्ण भक्तों द्वारा मनाया जाता है।

कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गौ-चारण लीला आरंभ की थी।

 कैसे करें गोपाष्टमी पूजन, पढ़ें विधि :-

 इस दिन बछड़े सहित गाय का पूजन करने का विधान है। इस दिन प्रातः काल उठ कर नित्य कर्म से निवृत हो कर स्नान करते है, प्रातः काल ही गौओं और उनके बछड़ों को भी स्नान कराया जाता है।
 गौ माता के अंगों में मेहंदी, रोली हल्दी आदि के थापे लगाए जाते हैं, गायों को सजाया जाता है, प्रातः काल ही धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड, जलेबी, वस्त्र और जल से गौ माता की पूजा की जाती है और आरती उतारी जाती है। पूजन के बाद गौ ग्रास निकाला जाता है, गौ माता की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा के बाद गौओं के साथ कुछ दूर तक चला जाता है।

श्री कृष्ण की गौ-चारण लीला की पौराणिक कथा:- 

 भगवान ने जब छठे वर्ष की आयु में प्रवेश किया तब एक दिन भगवान माता यशोदा से बोले- मैय्या अब हम बड़े हो गए हैं.... 

 मैय्या यशोदा बोली- अच्छा लल्ला अब तुम बड़े हो गए हो तो बताओ अब क्या करें...

 भगवान ने कहा- अब हम बछड़े चराने नहीं जाएंगे, अब हम गाय चराएंगे.

मैय्या ने कहा- ठीक है बाबा से पूछ लेना। मैय्या के इतना कहते ही झट से भगवान नंद बाबा से पूछने पहुंच गए...

 बाबा ने कहा- लाला अभी तुम बहुत छोटे हो अभी तुम बछड़े ही चराओ.. 
भगवान ने कहा- बाबा अब मैं बछड़े नहीं गाय ही चराऊंगा...
जब भगवान नहीं माने तब बाबा बोले- ठीक है लाल तुम पंडित जी को बुला लाओ- वह गौ चारण का मुहूर्त देख कर बता देंगे... 

 बाबा की बात सुनकर भगवान झट से पंडित जी के पास पहुंचे और बोले- पंडित जी, आपको बाबा ने बुलाया है, गौ चारण का मुहूर्त देखना है, आप आज ही का मुहूर्त बता देना मैं आपको बहुत सारा माखन दूंगा... 

पंडित जी नंद बाबा के पास पहुंचे और बार-बार पंचांग देख कर गणना करने लगे तब नंद बाबा ने पूछा, पंडित जी के बात है ? आप बार-बार क्या गिन रहे हैं? पंडित जी बोले, क्या बताएं नंदबाबा जी केवल आज का ही मुहूर्त निकल रहा है, इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहूर्त नहीं है... पंडित जी की बात सुन कर नंदबाबा ने भगवान को गौ चारण की स्वीकृति दे दी।

 भगवान जो समय कोई कार्य करें वही शुभ-मुहूर्त बन जाता है। उसी दिन भगवान ने गौ चारण आरंभ किया और वह शुभ तिथि थी कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी, भगवान के गौ-चारण आरंभ करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलाई।
माता यशोदा ने अपने लल्ला के श्रृंगार किया और जैसे ही पैरों में जूतियां पहनाने लगी तो लल्ला ने मना कर दिया और बोले मैय्या यदि मेरी गौएं जूतियां नहीं पहनती तो मैं कैसे पहन सकता हूं। यदि पहना सकती हो तो उन सभी को भी जूतियां पहना दो... और भगवान जब तक वृंदावन में रहे, भगवान ने कभी पैरों में जूतियां नहीं पहनी। आगे-आगे गाय और उनके पीछे बांसुरी बजाते भगवान उनके पीछे बलराम और श्री कृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वाल-गोपाल इस प्रकार से विहार करते हुए भगवान ने उस वन में प्रवेश किया तब से भगवान की गौ-चारण लीला का आरंभ हुआ। 
जब भगवान गौएं चराते हुए वृंदावन जाते तब उनके चरणों से वृंदावन की भूमि अत्यंत पावन हो जाती, वह वन गौओं के लिए हरी-भरी घास से युक्त एवं रंग-बिरंगे पुष्पों की खान बन गया था।

गोपाष्टमी के दिन संतान की दीर्घायु के कामना के लिए करें ये उपाय 

गोपाष्टमी के दिन महिलाएं अपने बच्चों की दीर्घायु की कामना के लिए गौ माता की पूजा करती है। इस दिन इसे महिलाएं गौ माता के नीचे से निकलकर गौ माता की परिक्रमा करती है। कहा जाता है इस दिन जो कोई भी गौ माता के नीचे से निकलता है उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती है। साल में आने वाली सभी अष्टमी में गोपाष्टमी को सबसे महत्वपूर्ण दर्जा दिया गया है।

इस लेख को ध्यानपूर्वक पढ़ें और पढ़ कर इस ज्ञान को अपने तक ही ना रखें इसे अधिक से अधिक शेयर करें ताकि यह ज्ञान सब तक पहुंच सके क्योंकि ज्ञान का दान सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं लाभकारी है

✍आचार्य जे पी सिंह
ज्योतिष, वास्तु विशेषज्ञ एवं एस्ट्रो मेडिकल स्पेशलिस्ट       
www.astrojp.com,
www.astrojpsingh.com
Mob .9811558158

Why is the festival of Gopashtami celebrated?

There is a belief behind the celebration of Gopashtami festival.  This belief is not from today but from ancient times.  This belief is associated with the stories related to the pastimes of Lord Krishna in Dwapar Yuga.  Lord Krishna used to love cows very much.  As he was small, his parents Nandbaba and Yashoda forbade him from grazing cows.  But it was the wish of Lord Shri Krishna, that he should also go to the forests and feed the cows and play with the friends.  Regarding this, he used to ask Nand Baba every day when he would go to graze the cow.  On this Nand Baba would say that very soon he will come after getting a Muhurta out of the Pandit.  After all, one day Lord Krishna insisted and reached the Brahmin's house with Nanda Baba and he asked the Muhurta, what is the need of Muhurta where Shri Krishna himself is standing?

How the celebration of Gopashtami started

The Brahmin said that today's auspicious time has come.  After this there is no Muhurta for 1 year.  Soon after the brahmin told, it was said by Nand Baba that he can now go for grazing the cow, after getting the order, Lord Krishna immediately started decorating the cows and Mother Yashoda also supported him and he kept the cows in the forests.  Took to rotate.  Since then the festival of Gopashtami is celebrated with full gusto by the Gopalkas and Krishna devotees.

Kartik Shukla Paksha Ashtami Tithi is celebrated as Gopashtami.  On this day Lord Shri Krishna started the cow-charan Leela.

How to do Gopashtami Puja, read the method :-

On this day there is a law to worship the cow along with the calf.  On this day, after getting up early in the morning, after retiring from daily work, bathing, cows and their calves are also bathed in the morning itself.
Mehendi, roli, turmeric etc. are applied to the parts of the cow, cows are decorated, in the morning itself, cow mother is worshiped with incense, lamp, flowers, akshat, roli, jaggery, jalebi, clothes and water.  And the aarti is performed.  After the worship, the cow grass is taken out, the cow mother is circumambulated, after the parikrama, she goes some distance with the cows.

Mythological story of Shri Krishna's cow-feeding Leela:-

When the Lord entered the age of the sixth year, then one day the Lord said to Mother Yashoda - Maiya, now we have grown up.

Maiya Yashoda said- Well Lalla, now you have grown up, so tell me what to do now...

God said - now we will not go to graze calves, now we will graze cows.

Maiya said - OK, ask Baba.  As soon as Maiya said this, in a hurry, Lord Nand reached to ask Baba.

Baba said - Lala, you are very young now, you only feed calves..
God said- Baba, now I will not only feed calves but cows...
When God did not agree, Baba said - Alright, Lal you call Pandit ji - he will tell after seeing the Muhurta of Gau Charan...

Hearing Baba's words, God quickly reached Pandit ji and said - Pandit ji, Baba has called you, you have to see the Muhurta of cow feeding, I will give you a lot of butter, tell me today's Muhurta...

Pandit ji reached to Nand Baba and after seeing the Panchang again and again started counting, then Nand Baba asked, what is the matter with Panditji?  What are you counting over and over?  Pandit ji said, what should Nandbaba tell, only today's Muhurta is coming out, after that there is no Muhurta for a year.

Whatever time God does any work, that becomes auspicious time.  On the same day the Lord started cow feeding and that auspicious date was Shukla Paksha Ashtami in the month of Kartik, this date is called Gopashtami due to the beginning of the Lord's cow feeding.
Mother Yashoda did her Lalla's makeup and as soon as she started wearing shoes on her feet, Lalla refused and said Maiya, if my cows do not wear shoes, then how can I wear them.  If you can wear them, then make all of them wear shoes... and as long as the Lord lived in Vrindavan, the Lord never wore shoes on his feet.  The cows in front and the Lord playing the flute behind them, singing the glory of Balarama and Shri Krishna behind them, Gwal-Gopal, while residing in this way, entered the forest, since then God's cow-feeding Leela started.
When the Lord went to Vrindavan while grazing the cows, the land of Vrindavan would have become very holy at his feet, that forest had become a mine of green grass and colorful flowers for the cows.

On the day of Gopashtami, do these measures for the long life of the children

On the day of Gopashtami, women worship Gau Mata for the long life of their children.  On this day, women come out from under the cow and go around the cow.  It is said that on this day, whoever comes out from under the cow, all his wishes are definitely fulfilled.  Gopashtami has been given the most important status among all the Ashtami coming in the year.

Read this article carefully and do not keep this knowledge to yourself after reading it, share it as much as possible so that this knowledge can reach everyone because the donation of knowledge is most important and beneficial.

Acharya JP Singh
Astrologer, Vastu Specialist & Astro Medical Specialist
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