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Showing posts from May, 2023

What is the importance of Nirjala Ekadashi ?

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निर्जला एकादशी का महत्व क्या है ? ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। 12 एकादशियों में से एक इस एकादशी का व्रत करने से सभी एकादशियों का फल मिलता है। इस व्रत का महत्व महर्षि वेदव्यास जी ने भीम को बताया था। अतः इसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। निर्जला एकादशी आज, व्रत की कथा, इतिहास और महत्व, उपवास में ध्यान रखें ये बातें निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का मात्र धार्मिक महत्त्व ही नहीं है। ये व्रत मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के नज़रिए से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित होता है। इस एकादशी का व्रत करके श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को पूरे साल की एकादशियों का फल मिलता है। इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।   एकादशी व्रत का इतिहास एक बार बहुभोजी भीमसेन ने व्यास जी के मुख से

What is the significance of Ganga Dussehra ?

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गंगा दशहरा क्यों मनाया जाता है, क्या है इसका धार्मिक और पौराणिक महत्व गंगा दशहरा का क्या महत्व है? हिंदु धर्म में गंगा दशहरा क्यों मनाया जाता है, जानते हैं  हर साल ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां गंगा की पूजा-अर्चना की जाती है. इस तिथि को गंगा दशहरा को गंगावतरण भी कहा जाता है. इस बार गंगा दशहरा 30 मई, 2023 मंगलवार को मनाया जाएगा. ऐसी मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं. इसी दिन मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था. भागीरथ अपने पूर्वजों की आत्मा का उद्धार करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लेकर आए थे. इसी कारण गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है. हिंदू धर्म में गंगा को मां का दर्जा दिया गया है. गंगाजल बहुत ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है. किसी भी शुभ कार्य और पूजा अनुष्ठान में गंगाजल का प्रयोग जरूर किया जाता है. गंगा भवतारिणी हैं, इसलिए हिंदू धर्म में गंगा दशहरा का विशेष महत्व माना जाता है. इसलिए इस दिन गंगा घाट पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिलती है. इस दिन गंगा के घाट पर भव्य गंगा आरती भी होती है. इसी दिन साल का आखिरी बड़ा मंगल भी रहेगा.

What is Manglik Dosh in Kundli ?

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कुंडली में मांगलिक दोष क्या है?  अधिकांश लोग मांगलिक दोष का अभिप्राय ‘मंगला’ या ‘मंगली’ होने से ही लगा लेते हैं। ऐसा समझा जाता है कि किसी भी कुंडली में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में मंगल की उपस्थिति जातक को मंगला या मंगली बना देती है और यह भी मान लिया जाता है कि उस कुंडली से संबंधित लड़के या लड़की का दांपत्‍य जीवन अति कष्टपूर्ण होगा। पर, वस्तुतः ऐसा होता नहीं है और यदि हम कुछ और बारीकियों में जाएं तो पाएंगे कि दिनभर में जन्म लेने वाले 60 फीसदी से अधिक लोग या तो मंगला होते हैं या मंगली। लेकिन क्या इतने सारे लोगों का वैवाहिक जीवन असफल होता है? तो फिर क्या है मंगली योग, जिससे लोग पहले भी डरते थे और आज भी डरते हैं? वस्तुतः मंगल के उपर्युक्त पांच स्थानों में बैठ जाने से जातक मंगला या मंगली तो हो सकता है, पर यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि व्यक्ति मांगलिक दोष से पीड़ित है या नहीं। अतः जब तक कुंडली में मांगलिक दोष नहीं होगा, तब तक व्यक्ति को डरने की कोई जरूरत नहीं। अगर हम थोड़ी और गहराई में जाएं तो पाएंगे कि सिर्फ मंगल ग्रह के कारण मांगलिक दोष नहीं उत्पन्न होते है

What is the effect of messy clothes on the planets.

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अस्त-व्यस्त कपड़ों का ग्रहों पर पड़ता है कैसा असर . किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों से भी की जाती है. ड्रेसिंग सेंस व्यक्ति का व्यक्तित्व बताने में काफी मददगार होता है. इन कपड़ों को आप सही तरीके से नहीं रखते हैं तो आपकी कुंडली में मौजूद ग्रहों का नकारात्मक प्रभाव आपके जीवन पर दिखने लगता है. ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य द्वारा किए जाने वाले कर्म के बारे में उल्लेख मिलता है. व्यक्ति की दिनचर्या और उसके रहन-सहन की वजह से कुंडली में मौजूद ग्रहों पर खासा असर होता है और अगर व्यक्ति की आदतें अच्छी हैं तो ग्रह प्रसन्न रहते हैं अन्यथा कुछ बुरी आदतों के कारण कई ग्रह ऐसे होते हैं जो नाराज हो जाते हैं. आज की इस कड़ी में हम बात करेंगे हमारे पहनने वाले कपड़ों को लेकर, जिनकी वजह से यह जानने में आसानी होती है कि व्यक्ति का स्वभाव कैसा है. कपड़े पहनने का तरीका अपने आप में मायने रखता है.  ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में मौजूद देव गुरु बृहस्पति और शनि इन दो ग्रहों का संबंध व्यक्ति के कपड़ों से माना जाता है. यदि आप गंदे, फटे-पुराने कपड़े पहनते हैं तो इससे बृहस्पत

Married life and Saturn

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वैवाहिक जीवन और शनि कुण्डली में शनि की स्थिति अच्छी नहीं हो तो व्यक्ति को वैवाहिक जीवन में कई प्रकार की समस्याओं का समाना करना पड़ता है। किसी को वैराग की ओर प्रेरित करके शनि वैवाहिक जीवन के आनंद को नष्ट कर देता है तो किसी के विवाहेत्तर संबंध के कारण पारिवरिक जीवन में जहर घोल देता है। शनि की स्थिति अच्छी नहीं होने पर व्यक्ति की शादी में भी बाधा आती है और सामान्य से अधिक उम्र में व्यक्ति की शादी होती  है। शनि एवं शुक्र के साथ मंगल का होना वैवाहिक जीवन के लिए अत्यंत कष्टकारी होता है। ऐसे लोगों के विवाहेत्तर संबंध बन सकते हैं जिससे वैवाहिक जीवन में तनाव और संबंध विच्छेद तक हो सकता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसर जन्मपत्री में सातवें घर में शनि के साथ चन्द्रमा होने पर व्यक्ति का अपने जीवनसाथी से स्नेहपूर्ण संबंध नहीं रह पता है। ऐसे लोगों के विवाहेत्तर संबंध बनते हैं। जिस व्यक्ति की कुण्डली में शनि सातवें घर में अपनी नीच राशि मेष में होता है अर्थात जिनका लग्न तुला होता है उनकी कुण्डली में शनि सातवें घर में बैठा हो तो विवाह अपने से उम्र में काफी बड़े व्यक्ति से होता है। शनि और सूर्य आ

What is gotra, why is it important

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गोत्र क्या होता है, क्यों है इसका महत्व सनातन धर्म में गोत्र का बहुत महत्व है। 'गोत्र' का शाब्दिक अर्थ तो बहुत व्यापक है। विद्वानों ने समय-समय पर इसकी यथोचित व्याख्या भी की है। 'गो' अर्थात् इन्द्रियां, वहीं 'त्र' से आशय है 'रक्षा करना', अत: गोत्र का एक अर्थ 'इन्द्रिय आघात से रक्षा करने वाले' भी होता है जिसका स्पष्ट संकेत 'ऋषि' की ओर है।  सामान्यत: 'गोत्र' को ऋषि परम्परा से संबंधित माना गया है। ब्राह्मणों के लिए तो 'गोत्र' विशेषरूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ब्राह्मण ऋषियों की संतान माने जाते हैं। अत: प्रत्येक ब्राह्मण का संबंध एक ऋषिकुल से होता है। प्राचीनकाल में चार ऋषियों के नाम से गोत्र परंपरा प्रारंभ हुई।  ये ऋषि हैं-अंगिरा,कश्यप,वशिष्ठ और भगु हैं। कुछ समय उपरान्त जमदग्नि, अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त्य भी इसमें जुड़ गए। व्यावहारिक रूप में 'गोत्र' से आशय पहचान से है। जो ब्राह्मणों के लिए उनके ऋषिकुल से होती है। कालान्तर में जब वर्ण व्यवस्था ने जाति-व्यवस्था का रूप ले लिया तब यह पहचान स्थान व कर्म के स

what is guru pushya ?

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गुरु पुष्य क्या है गुरु पुष्‍य नक्षत्र में खरीदारी करना शुभ माना जाता है और इस दिन को नये कार्य को करने का भी शुभ दिन माना गया है। आओ जानते हैं कि गुरु पुष्य क्या है और शुभ फल देने वाले इस नक्षत्र की 25 बड़ी बातें। गुरु पुष्‍य नक्षत्र क्या है : 27 नक्षत्रों में से एक आठवां नक्षत्र पुष्‍य है और 28वां नक्षत्र अभिजीत है। जिस वार को पुष्य नक्षत्र आता है उसे उसी वार के अनुसार जाना जाता है। जैसे रवि पुष्‍य योग, शनि पुष्य योग, गुरु पुष्य योग। बुधवार और शुक्रवार के दिन पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र उत्पातकारी भी माने गए हैं। बाकि दिन आने वाले पुष्‍य नक्षत्र शुभ है और उनमें भी शनि और गुरु पुष्‍य    हिंदू पंचांग के हर महीने में अपने क्रम के अनुसार विभिन्न नक्षत्र चंद्रमा के साथ संयोग करते हैं। जब यह क्रम पूर्ण हो जाता है तो उसे एक चंद्र मास कहते हैं। इस प्रकार हर महीने में पुष्य नक्षत्र का शुभ योग बनता है। नक्षत्र कथा के अनुसार ये 27 नक्षत्र भगवान ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं हैं, इन सभी का विवाह दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा के साथ किया था। चंद्रमा का विभिन्न नक्षत्रों के साथ स

Women should not do this work at night otherwise mother Lakshmi will get angry .

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रात के समय जूठे बर्तन छोड़ने से हो सकता है बड़ा नुकसान, जानें क्या कहता है शास्त्र वास्तु शस्त्र में जूठे बर्तन ज्यादा देर तक घर में रखना अशुभ सूचक होता है. बता दें कि भोजन करने के बाद सभी जूठे बर्तनों को साफ कर देना चाहिए. क्या आप जानते हैं कि रात को अगर हम जूठे बर्तन साफ किए बिना सो जाते हैं तो इसका क्या बुरा असर पड़ता हैं? रात में झूठे बर्तन क्यों नहीं रखना चाहिए? घर में झूठे बर्तन किस को दावत देते हैं? कई घरों में रात में भोजन करने के बाद जूठे बर्तनों को सिंक में ही छोड़ दिया जाता है और उन बर्तनों को सुबह धोया जाता है। परंतु यह आदत वास्तु और ज्योतिष के अनुसार नुकसानदायक हो सकती है। 1. शास्त्रों के अनुसार शाम को या रात में भोजन करने के बाद बर्तन बिना धोए सो जाते हैं तो दरिद्रता का वास होकर धन का नाश होता है। आर्थिक तंगी से पूरा घर परेशान रहता है।  2. कहते हैं कि बर्तन में माता लक्ष्मी का वास होता है। भोजन करने के बाद उन्हें बिना धोए नहीं रखना चाहिए। दरअसल, पहले के जमाने में बर्तन पीतल और तांबे के होते थे। अमीर लोग चांदी के बर्तन में भोजन करते थे। यह तीनों ही धातु को पवित्र

Immunity becomes weak due to this planet of horoscope

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कुंडली के इस ग्रह की वजह से कमज़ोर होती है Immunity शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ एस्ट्रो मेडिकल के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में ऐसे ग्रहण होते हैं जिसकी वजह से जीवन में कई परेशानियां आने लगती हैं। अधिकतर लोगों को कुंडली में मौज़ूगा ग्रहों की दशा के चलते स्वास्थ्य संबंधी मुसीबतें घेर लेती हैं। मगर सवाल ये है कि वो कौन सा ग्रह है जो स्वास्थ्य को प्रभावित करता है?  ऐसा कहा जाता है कि जिन लोगों की कुंडली में लग्नेश ग्रह छटे, आठवें  भाव में होता है, अपनी नीच राशि में होता है, लग्नेश ग्रह षष्टेश या अष्टमेश ग्रह के साथ होता है तब ऐसी में व्यक्ति की इम्युनिटी कमज़ोर होती है। जिस कारण स्वास्थ्य खराब होता है।  दरअसल ज्योतिष शास्त्र में इस बात का उत्तर मौज़ूद है। तो चलिए जानते हैं इससे जुड़ी अन्य जानकारी साथ ही जानेंगे ग्रह को ठीक करने के उपाय-  इसके अलावा यदि कुंडली का लग्न भाव पीड़ित हो तो भी व्यक्ति की इम्युनिटी कमजोर होती है और बीमारियां बढ़ने की संभावना होती है।  कुंडली में चन्द्रमा छटे भाव में हो या चन्द्रमा का आठवें भाव में हो और नीच राशि में हो तो भी इम्युनिटी क

What is Rambha Tritiya fast ?

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क्या है रंभा तृतीया व्रत-  हमारे धर्म शास्त्रों में बताया गया है जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन रंभा तृतीया का व्रत किया जाता है. रंभा तृतीया के दिन सभी विवाहित महिलाएं पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ व्रत करती हैं. जिससे उन्हें गणेश जी की तरह बुद्धिमान संतान की प्राप्ति हो और उनके ऊपर माता पार्वती और शिव जी की कृपा हमेशा बनी रहे. हिंदू मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में एक रत्न रंभा भी थी, ऐसा माना जाता है कि स्वर्गलोक की अप्सरा रंभा अद्वितीय सुंदरी थी. कई साधक रंभा के नाम का जाप करके सम्मोहन सिद्धि प्राप्त करते हैं.  रंभा तृतीया का महत्व-  रंभा तृतीया के दिन विवाहित महिलाएं चूड़ियों के जोड़े की पूजा करती हैं. चूडियो के जोड़े को स्वर्ग लोक की अप्सरा रंभा का स्वरूप माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार रंभा तृतीया का व्रत अप्सरा रंभा ने सौभाग्य प्राप्त करने के लिए किया था. इसलिए इसे रंभा तृतीया कहा जाता है. रंभा तृतीया का व्रत सभी सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और बुद्धिमान संतान प्राप्त करने के लिए करती हैं. रंभा तृतीया के व्रत को कुंवारी क