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What is the importance of Sawan?

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सावन की महत्ता क्या है ? सावन मास को सर्वोत्तम मास कहा जाता है। यह 5 पौराणिक तथ्य बताते हैं कि क्यों सावन है सबसे खास.. 1. मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।  2. भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है। 3. पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की; लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम 'नीलकंठ महादेव' पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल...

When and how did the Guru Purnima festival start ?

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गुरु पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म संस्कृति है। आदिगुरु परमेश्वर शिव दक्षिणामूर्ति रूप में समस्त ऋषि मुनि को शिष्यके रूप शिवज्ञान प्रदान किया था। उनके स्मरण रखते हुए गुरुपूर्णिमा मानाया याता है। गुरु पूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनों को समर्पित परम्परा है जिन्होंने कर्म योग आधारित व्यक्तित्व विकास और प्रबुद्ध करने, बहुत कम अथवा बिना किसी मौद्रिक खर्चे के अपनी बुद्धिमता को साझा करने के लिए तैयार हों। इसको भारत, नेपाल और भूटान में हिन्दू, जैन और बोद्ध धर्म के अनुयायी उत्सव के रूप में मनाते हैं। यह पर्व हिन्दू, बौद्ध और जैन अपने आध्यात्मिक शिक्षकों / अधिनायकों के सम्मान और उन्हें अपनी कृतज्ञता दिखाने के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हिन्दू पंचांग के हिन्दू माह आषाढ़ की पूर्णिमा (जून-जुलाई) मनाया जाता है।इस उत्सव को महात्मा गांधी ने अपने आध्यात्मिक गुरु श्रीमद राजचन्द्र सम्मान देने के लिए पुनर्जीवित किया। ऐसा भी माना जाता है कि व्यास पूर्णिमा वेदव्यास के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। कब और कैसी हुई गुरु पूर्णिमा मनाने की शुरुआत, क्या है इस दिन का महत्व गुर...

12 houses of the horoscope and their special importance in your life !

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कुंडली के 12 भाव एवं उनका आपके जीवन में ख़ास महत्व ! भाव का परिचय: जन्म कुंडली में भाव क्या होते हैं आइए उन्हेँ जानने का प्रयास करें. जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं और हर भाव में एक राशि होती है. कुँडली के सभी भाव जीवन के किसी ना किसी क्षेत्र से संबंधित होते हैं. इन भावों के शास्त्रो में जो नाम दिए गए हैं वैसे ही इनका काम भी होता है. पहला भाव तन, दूसरा धन, तीसरा सहोदर, चतुर्थ मातृ, पंचम पुत्र, छठा अरि, सप्तम रिपु, आठवाँ आयु, नवम धर्म, दशम कर्म, एकादश आय तो द्वादश व्यय भाव कहलाता है़. सभी बारह भावों को भिन्न काम मिले होते हैं. कुछ भाव अच्छे तो कुछ भाव बुरे भी होते हैं. जिस भाव में जो राशि होती है उसका स्वामी उस भाव का भावेश कहलाता है. हर भाव में भिन्न राशि आती है लेकिन हर भाव का कारक निश्चित होता है. बुरे भाव के स्वामी अच्छे भावों से संबंध बनाए तो अशुभ होते हैं और यह शुभ भावों को खराब भी कर देते हैं. अच्छे भाव के स्वामी अच्छे भाव से संबंध बनाए तो शुभ माने जाते हैं और व्यक्ति को जीवन में बहुत कुछ देने की क्षमता रखते हैं. किसी भाव के स्वामी का अपने भाव से पीछे जाना अच्छा नही...

Chaturmas will be of 5 months in the year 2023, what is the reason ?

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साल 2023 में चातुर्मास 5 महीने का होगा क्या कारण है ?  आषाढ़ माह की देवशयनी एकादशी से चातुर्मास लग जाते हैं. इस साल चतुर्मास 4 नहीं बल्कि 5 महीने का होगा. जानते हैं चातुर्मास कब से शुरू होंगे, इस दौरान क्या करें, क्या न करें.  हिंदू धर्म में चातुर्मास को बहुत खास माना गया है. चातुर्मास यानी वह चार महीने जब देवताओं का शयनकाल रहता है, जिसमें सूर्य दक्षिणायन होते हैं और समस्त मांगलिक कार्य पर रोक लगा जाती है. हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल एकादशी यानी देवशयनी एकादशी  से भगवान श्रीहरि क्षीरसागर में योग निद्रा के लिए चले जाते है और वे वहां चार माह विश्राम करते हैं.  इन चार माह की अवधि को चातुर्मास कहा जाता है. देवों के शयनकाल के समय शुभ कार्य करने की मनाही होती है. इस साल चतुर्मास 4 नहीं बल्कि 5 महीने तक मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाएगी. आइए जानते हैं चातुर्मास कब से शुरू होंगे, इस दौरान क्या करें, क्या न करें.  चातुर्मास 2023 कब से कब तक ?  पंचांग के अनुसार इस साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी 29 जून 2023 को है, इसी दिन से चातुर्मास की शुरुआत हो ...

The habit of keeping the bathroom dirty can make you poor

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बाथरूम गंदा रखने की आदत बना सकती है गरीब, वास्‍तु शास्‍त्र अनुसार जानें कहां हो इसका स्‍थान बाथरूम को गंदा छोड़ते हैं तो राहु-केतु का दोष बढ़ेगा बाथरूम में पानी की बरबादी कुंडली में चंद्रमा कमजोर कर सकता है घर में वास्तु दोष बढ़ने की वजह से परिवार वाले नकारात्मक विचार के हो जाते हैं घर में स्नान घर यानि बाथरूम सबसे अहम जगह होती है, जिसका न सिर्फ परिवार वाले बल्‍कि घर में आने वाले महमान भी प्रयोग करते हैं। वास्‍तु के अनुसार बाथरूम बनाने की जगह के अलावा इसकी साफ सफाई पर भी काफी ध्‍यान देना चाहिये। बहुत से लोग घर तो साफ कर लेते हैं मगर बाथरूम की साफ सफाई करने पर उतना ध्‍यान नहीं देते।  बाथरूम अगर दिनों दिन गंदा पड़ा रहता है तो इससे आपके जीवन में राहु-केतु का दोष बढ़ेगा। यदि राहु-केतु नाराज हो गए तो अनेक तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जब भी किसी की कुंडली में राहु की वक्री दृष्टि पड़ती है तो वह दिलो दिमाग खो बैठता है और उसका दिमाग ठीक से काम नहीं करता। यही नहीं इनकी बुरी छाया पेट में अल्सर, हड्डियों से संबंधित परेशानी और नौकरी में ट्रांसफर की समस्याा भी पैदा कर स...

Worship of Amla tree, Mercury will be strong, Mother Lakshmi's blessings will shower throughout life

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आंवला वृक्ष की पूजा, मजबूत होगा बुध ग्रह, जीवनभर बरसेगी मां लक्ष्मी की कृपा प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि मुनियों ने आवला को औषधीय रूप में प्रयोग किया। परन्तु आंवले का धार्मिक रूप से भी महत्व माना जाता है। आंवला पूजनीय और पवित्र माना गया है। वामन पुराण में कहा गया है कि आषाढ़ मास के प्रथम बुधवार को आंवला दान किसी ब्राम्हण को भक्तिपूर्वक करने से लक्ष्मी जी जो रूठ गई हों तो उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है। आज आषाढ़ मास का बुधवार और पूर्वा आषाढ़ नक्षत्र भी है। माना जाता है कि आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है। यह वृक्ष विष्णु जी को अत्यंत प्रिय है। कहा जाता है कि आवंले के पेड़ से बुध ग्रह की शांति भी की जाती है। इस पेड की पूजा अर्चना करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं वास्तुशास्त्र में भी आंवले का वृक्ष घर में लगाना शुभ माना जाता है। आंवले के पेड़ को हमेशा पूर्व दिशा में लगाना चाहिए इससे सकारात्मक उर्जा का प्रवाह होता है। इस वृक्ष को घर की उत्तर दिशा में भी लगाया जा सकता है। आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर यज्ञ करने से लक्ष्मी जी की कृपा मिलती है। जिस घर में आंवला सदा मौ...

Tantra Sadhna is specially done in Gupta Navratri.

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गुप्त नवरात्रि में विशेष रूप से होती है तंत्र साधना.  सनातन धर्म में मां देवी की आराधना और उन्हें प्रसन्न करना अन्य देवी-देवताओं के मुकाबले थोड़ा मुश्किल है. परंतु जब देवी मां की कृपा किसी भक्त पर पढ़ती है तो उसके जीवन में आ रही समस्याएं दूर होती है और उसके हर काम बनते चले जाते हैं. मां दुर्गा की आराधना के लिए नवरात्रि का पर्व सर्वोत्तम माना जाता है. यह पर्व साल में 4 बार मनाया जाता है जिनमें से दो गुप्त नवरात्रि होती हैं और दो सामान्य मानी जाती हैं. गुप्त नवरात्रि उन लोगों के लिए बेहद खास होती है जो तंत्र साधना में लीन होते हैं या फिर जिन्हें तांत्रिक विद्या को सिद्ध करना होता है.  धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गृहस्थ जीवन जी रहे या फिर साधारण व्यक्ति के लिए सामान्य नवरात्रि विशेष मानी जाती है. ये चैत्र और अश्विन माह की नवरात्रि होती है जिसमें सात्विक या दक्षिणमार्गी साधना करने का विधान है. वहीं माघ और आषाढ़ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है. जिसमें तंत्र साधना यानी वाममार्गी साधना का विधान है. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार तंत्र साधना के लिए गुप्त नवरात्...