Astrology gives information about monsoon, do you know how ?
सिर्फ मौसम विभाग ही नहीं ज्योतिष भी देता है मानसून की सूचना, जानते हैं कैसे?
वर्तमान समय में जलवायु एवं वर्षा को बताने के लिए मौसम विज्ञान के साथ-साथ अनेक नई वैज्ञानिक प्रणालियां प्रचलित हो चुकी हैं लेकिन प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में इसको जानने के लिए ज्योतिष शास्त्र की गणना चली आ रही है। आज भी पंचांगों में वर्षा का योग पंचांग बनाते समय ही बता दिया जाता है।
ज्योतिष में वर्षा के आधार जलस्तंभ के रूप में बताया गया है। इसलिए वर्षा को आकृष्ट करने के लिए यज्ञ बहुत महत्वपूर्ण कहा गया है। 'अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्न संभव' वस्तुतः वायु तथा बादलों का परस्पर संबंध होता है। आकाश मंडल में बादलों को हवा ही संचालित करती है वही उनको संभाले रखती है इसलिए वायुमंडल का वर्षा एवं स्थान विशेष में वर्षा करने में महत्वपूर्ण योगदान होता है।
तूफानी वायु, जंगलों एवं अन्य स्थानों में लगे हुए वृक्ष मकानों तथा पर्वत की शीला खंडों को उखाड़ फेंकने में समर्थ होते हैं लेकिन जब आर्द्रा, आश्लेषा, उत्तरा भाद्र पद, पुष्य, शतभिषा, पूर्वाषाणा एवं मूल नक्षत्र वारुण अर्थात् जल मंडल के नक्षत्र कहे जाते हैं। इनसे विशेष ग्रहों का योग बनने पर वर्षा होती है। साथ ही रोहिणी नक्षत्र का वास यदि समुद्र में हो तो घनघोर वर्षा का योग बनता है। साथ ही रोहिणी का वास समुद्र तट पर होने पर भी वर्षा खूब होती है।
इसलिए वर्षा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए ज्योतिष शास्त्र में वायुमंडल का विचार किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार पूर्व तथा उत्तर की वायु चले तो वर्षा शीघ्र होती है। वायव्य दिशा की वायु के कारण तूफानी वर्षा होती है। ईशानकोण की चलने वाली वायु वर्षा के साथ-साथ मानव हृदय को प्रसन्न करती है। श्रावण में पूर्व दिशा की और वादों में उत्तर दिशा की वायु अधिक वर्षा का योग बनाती है। शेष महीनों में पश्चिमी वायु (पछवा) वर्षा की दृष्टि से अच्छी मानी जाती है।
इसी प्रकार नव ग्रहों का भी वर्षा के योग में महत्वपूर्ण प्रभाव रहता है। बुध और शुक्र एक राशि में होने पर तथा उस पर बृहस्पति की दृष्टि पड़े तो अच्छी वर्षा होती है। लेकिन वहां शनि और मंगल जैसे क्रूर और उग्र ग्रह की दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए। गोचर में बुध-गुरु एक राशि में होने पर तथा शुक्र की दृष्टि पड़ने पर अच्छी वर्षा का योग बनता है।
गुरु और शुक्र एक राशि में पड़ने पर तथा उस पर बुध की दृष्टि हो तो क्रूर ग्रहों की दृष्टि पड़ने पर भी अति वृष्टि का योग बनता है जिससे भूस्खलन और बाढ़ की स्थिति बनती है। 'जीव शुक्रौ यदा युक्तौ क्रूरेणापि विलोकितौ, बुध दृष्टौ महावृष्टि कुरुतः जलयोगतः।' वस्तुतः इन ग्रहों से पानी का आकर्षण होता है।
यदि गोचर में बुध, गुरु एवं शुक्र तीनों एक ही राशि में हों साथ ही कू्रर ग्रहों की इन पर दृष्टि न पड़े तो महावर्षा का योग बनता है। इसी प्रकार शुक्र के साथ शनि और मंगल एक राशि में आ जाए तथा वहां गुरु की दृष्टि पड़े तो घनघोर वर्षा होती है। गोचर में ही शुक्र का चंद्रमा के साथ एक राशि में संबंध होने पर या मंगल का चंद्रमा के साथ एक राशि में स्थित होने पर या दोनों ही चंद्र राशि में आएं तो अति वृष्टि का योग बनता है।
वर्षा को जानने के लिए ज्योतिष विज्ञानियों ने नक्षत्रों पर भी विशेष विचार किया है जैसे आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा आदि। सूर्य और गुरु एक राशि में हों तथा गुरु और बुध भी एक राशि में हों वर्षा तब तक जारी रहती है जब तक बुध या गुरु में से कोई एक अस्त न हो।
ज्योतिष में जब भी नक्षत्रों और ग्रहों का विशेष योग योग बनता है तब बारिश होती है.
भारत में मौसम की भविष्यवाणी का काम तो भारतीय मौसम विभाग करता है लेकिन ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों के जरिए बारिश की भविष्यवाणी सदियों से की जाती रही है. ज्योतिष गणना के अनुसार, बारिश की भविष्यवाणी भी देश का अहम हिस्सा है. बारिश के लिए ज्योतिष में कई प्रकार के नक्षत्रों का जिक्र है. आद्रा नक्षत्र, भद्रा नश्रत्र, हथिया नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र बारिश वाले माने जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चित्रा नक्षत्र तक अच्छी बारिश होने की उम्मीद रहती है. भारत में विज्ञान के साथ-साथ पंचांग का भी महत्व है और यहां नक्षत्रों के जरिए बारिश के आगमन और प्रस्थान की जानकारी दी जाती है.
इन नक्षत्रों में होती है खूब बारिश
आद्रा नक्षत्र, भद्रा नश्रत्र, हथिया नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र में बारिश वाले माने जाते हैं और इस दौरान देश में खूब बारिश होती है. जुलाई से शुरू होकर ये अक्टूबर तक खत्म होने वाले इन नक्षत्रों में बारिश होती है. नक्षत्रों में आर्द्रा, अश्लेषा, उत्तरा, भाद्रपद, पुष्य शतभिषा, पूर्वाषाणा और मूल नक्षत्र जल मंडल के नक्षत्र माने जाते हैं. इन नक्षत्रो में ग्रहों के विशेष योग बनने पर बारिश होती है.
इन महीनों में देश में सक्रिय रहता है मॉनसून
मौसम विभाग भी जून से लेकर सितंबर तक बारिश को लेकर मौसम का पूर्वानुमान बताता है. यानी मॉनसून देश में इतने वक्त तक सक्रिय होता है. वहीं, ज्योतिष में भी इन्हीं महीनों को बारिश का महीना बताया जाता है. ऐसे में विज्ञान और ज्योतिष दोनों वर्षा के मौसम का समय लगभग एक ही बताते हैं.
ग्रहों के कारण मौसम में आती है विविधता
वर्षा के पूर्वानुमान या भविष्यवाणी में सूर्य की भूमिका अहम हैं जो सभी मौसम में परिवर्तनों का कारक है. लेकिन दूसरे ग्रहों का प्रभाव हर साल मौसम में अलग तरह कि विविधता लाता है इनके साथ नक्षत्रों का भी प्रभाव होता है. ग्रहों में चंद्रमा, शुक्र और नेप्च्यून जल के कारक हैं और मंगल, प्लूटो एवं गुरू गर्मी बढ़ाने वाले और बारिश में दखल देने वाले ग्रह हैं. सभी ग्रहों के योग, नक्षत्र, राशियां, ग्रहों की क्रांतियां, गति आदि को गणना में शामिल कर बारिश की भविष्यवाणी की जाती है.
समझिए क्या होते हैं नक्षत्र
पृथ्वी और सूर्य की न्यूनतम दूरी का जो तल है, उसे वृताकार रूप में पृथ्वी या सूर्य के चारों ओर 12 भागों या राशियों में 360 डिग्रियों में बांटा गया है जिसे भचक्र कहते हैं. इस तरह हर राशि 30 डिग्री में आती है. इन्हीं में 27 तारा समूह या नक्षत्र भी बांटें गए हैं. किस नक्षत्र में कौन सा ग्रह कब आता है इसी से बारिश के बारे में भविष्यवाणी की जाती है.
जलवायु परिवर्तन से बदलेगा मौसम का पूर्वानुमान! मौसम विभाग के अनुमान से लेकर ज्योतिष गणना तक पर कई बार सवाल उठते हैं. खुद वैज्ञानिक आधार पर अपने पूर्वानुमानों को सटीक होने का दावा नहीं करता तो हाल में हुए कई शोध यह भी बताने लगे हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का पूर्वानुमान और ज्यादा मुश्किल होता जाएगा. दूसरी ओर ज्योतिष गणना भी कई बार सटीक नहीं हो पाती है.
ज्योतिष में ऐसे की जाती है बारिश की भविष्यवाणी
बारिश के बारे में विचार करते समय ग्रहों के योग, दृष्टि आदि की भूमिका होती है. बुध और शुक्र एक राशि में होने के साथ उस पर गुरू की दृष्टि पड़े तो अच्छी वर्षा होती है. पर वहां शनि और मंगल जैसे क्रूर और उग्र ग्रह की दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए. गुरु और शुक्र एक राशि में पड़ने पर तथा उस पर बुध की दृष्टि हो तो क्रूर ग्रहों की दृष्टि पड़ने पर भी अति वृष्टि का योग बनता है जिससे भूस्खलन और बाढ़ की स्थिति बनती है. इनके अलावा भी बहुत सारे योग हैं जो बारिश के योग बनाते हैं.
इस लेख को ध्यानपूर्वक पढ़ें और पढ़ कर इस ज्ञान को अपने तक ही ना रखें इसे अधिक से अधिक शेयर करें ताकि यह ज्ञान सब तक पहुंच सके क्योंकि ज्ञान का दान सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं लाभकारी है
✍आचार्य जे पी सिंह
ज्योतिष, वास्तु विशेषज्ञ एवं एस्ट्रो मेडिकल स्पेशलिस्ट www.astrojp.com,
www.astrojpsingh.com
Mob .9811558158
Not only the Meteorological Department, astrology also gives information about monsoon, do you know how?
At present, along with meteorology, many new scientific systems have become prevalent to tell the climate and rainfall, but since ancient times, the calculation of astrology has been going on in the Indian society to know this. Even today, the sum of rainfall in almanacs is told at the time of preparing the almanac itself.
In astrology, the basis of rain has been described as water column. That's why Yagya is said to be very important to attract rain. 'Annad Bhavanti Bhutani Parjanyadanna Sambhav' In fact, there is mutual relation between air and clouds. The wind operates the clouds in the sky, it keeps them safe, so the atmosphere has an important contribution in rain and rainfall in a particular place.
Stormy wind, trees engaged in forests and other places are capable of uprooting houses and rock blocks of mountains, but when Ardra, Ashlesha, Uttara Bhadrapad, Pushya, Shatabhisha, Purvashana and Mool Nakshatra are called Varuna i.e. Nakshatra of Jal Mandal Are. Due to the combination of special planets, it rains. Also, if the abode of Rohini Nakshatra is in the sea, then there is a possibility of heavy rain. Along with this, there is a lot of rain even when Rohini resides on the sea coast.
That's why the atmosphere is considered in astrology to get the knowledge of rain. According to the scriptures, if the wind blows from the east and north, it rains quickly. Due to the wind of the northwest direction, there is stormy rain. The blowing wind of the northeast pleases the human heart along with the rain. In Shravan, the winds of the east direction and in the promises of the north create the sum of more rain. In the rest of the months, the western wind (Pachawa) is considered good in terms of rainfall.
Similarly, the nine planets also have an important influence in the sum of rain. If Mercury and Venus are in one sign and Jupiter aspects it, it rains well. But cruel and fierce planets like Shani and Mars should not be visible there. When Mercury-Guru are in the same sign in the transit and when Venus is aspected, there is a chance of good rain.
When Guru and Venus fall in the same sign and Mercury is aspected on it, even when malefic planets are aspected, there is a possibility of excessive rainfall, which creates a situation of landslides and floods. 'Jiva Shukrau Yada Yuktau Krurenapi Vilokitau, Budh Drishtau Mahavrishti Kurutah Jalayogatah.' In fact, water is attracted by these planets.
If Mercury, Guru and Venus are in the same sign during the transit, as well as they are not aspected by malefic planets, then the yoga of Mahavarsha is formed. Similarly, if Saturn and Mars come together with Venus in one sign and there is aspect of Jupiter, it rains heavily. During transit itself, if Venus is in a sign with the Moon, or if Mars is situated in a sign with the Moon, or both come in the Moon sign, then there is a chance of excessive rain.
To know the rain, astrologers have given special consideration to Nakshatras like Ardra, Punarvasu, Pushya, Ashlesha, Magha, Purvaphalguni, Uttaraphalguni, Hasta, Chitra etc. If Sun and Jupiter are in the same sign and Jupiter and Mercury are also in the same sign, the rain continues until either Mercury or Jupiter sets.
In astrology, whenever there is a special combination of constellations and planets, then it rains.
The Indian Meteorological Department does the work of forecasting the weather in India, but in astrology, rain has been predicted for centuries through constellations. According to astrological calculations, rain forecasting is also an important part of the country. Many types of constellations are mentioned in astrology for rain. Adra Nakshatra, Bhadra Nakshatra, Hathiya Nakshatra, Chitra Nakshatra are considered to be of rain. According to astrology, good rain is expected till Chitra Nakshatra. In India, along with science, almanac is also important and here information about the arrival and departure of rain is given through constellations.
It rains a lot in these constellations
Adra Nakshatra, Bhadra Nakshatra, Hathiya Nakshatra, Chitra Nakshatra are considered to be rainers and during this time there is a lot of rain in the country. It rains in these Nakshatras starting from July and ending in October. Among the Nakshatras, Ardra, Ashlesha, Uttara, Bhadrapada, Pushya Shatabhisha, Purvashana and Mool Nakshatra are considered to be the Nakshatras of the water system. It rains when special conjunctions of planets are formed in these constellations.
Monsoon remains active in the country during these months.
The Meteorological Department also gives weather forecast regarding rain from June to September. That is, the monsoon is active in the country for so long. At the same time, in astrology also these months are called the months of rain. In such a situation, both science and astrology tell almost the same time of the rainy season.
Variations in weather due to planets
The role of the sun is important in the forecast or prediction of rain, which is the factor of changes in all seasons. But the influence of other planets brings different variations in the weather every year, along with them the constellations also influence. Among the planets, Moon, Venus and Neptune are the factors of water and Mars, Pluto and Guru are the planets that increase heat and interfere with rain. Rain is predicted by including all the planetary combinations, constellations, zodiac signs, planetary revolutions, motion etc. in the calculation.
Understand what are constellations
The plane of the minimum distance between the Earth and the Sun is divided into 360 degrees in 12 parts or signs around the Earth or the Sun in a circular form, which is called Bhachakra. In this way every zodiac comes in 30 degrees. In these, 27 star groups or constellations have also been divided. In which Nakshatra, when which planet comes, it is predicted about rain.
Weather forecast will change due to climate change! From the estimates of the Meteorological Department to astrological calculations, many times questions arise. It does not claim its predictions to be accurate on scientific grounds itself, so many recent researches have also started telling that due to climate change, rain forecasting will become more difficult. On the other hand, astrological calculations are also sometimes not accurate.
This is how rain is predicted in astrology
Yoga, vision etc of planets play a role while thinking about rain. When Mercury and Venus are in the same sign and aspected by Jupiter, there is good rain. But cruel and fierce planets like Shani and Mars should not be visible there. If Jupiter and Venus are in the same sign and Mercury is aspecting it, even if malefic planets are aspecting it, there is a possibility of heavy rains, which leads to landslides and floods. Apart from these, there are many yogas which create the yoga of rain.
Read this article carefully and do not keep this knowledge to yourself after reading, share it as much as possible so that this knowledge can reach everyone because the donation of knowledge is most important and beneficial.
✍ Acharya JP Singh
Astrology, Vastu Specialist & Astro Medical Specialist www.astrojp.com,
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Mob.9811558158
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