Mohini Ekadashi Story, Rituals and Significance


शास्त्रों के अनुसार ये है मोहिनी एकादशी व्रत  का महत्व क्या है ?

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में मोहिनी एकादशी का व्रत करने से सभी कामनाएं जहां पूर्ण हो जाती हैं, वहीं प्रभु कृपा प्राप्त होने से जीवन में किसी प्रकार का कोई अभाव नहींं रहता। संसार के सभी सुखों को भोगता हुआ व्यक्ति अंत में प्रभु के धाम को प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान को एकादशी तिथि अति प्रिय है तथा नदियों में गंगा को जो स्थान प्राप्त है वही स्थान व्रतों में एकादशी को प्राप्त है। कहा जाता है कि जिसकी कोई कामना किसी भी कारण वश पूरी न हो रही हो वह एकादशी का व्रत सच्चे मन से करें तो उसकी कोई भी मनोकामना अधूरी नहीं रहती। इसके लिए दशमी को व्रत करने का संकल्प करना चाहिए। एकादशी में व्रत तथा द्वादशी को प्रात: उठकर मां लक्ष्मी जी का पूजन करने मात्र से ही मनुष्य सभी बंधनों से मुक्त एवं सभी सुखों से युक्त हो जाता है। 

कैसे करें पूजन

मोहिनी एकादशी को भगवान श्री कृष्ण के पूजन का विधान है। इस दिन सूर्य निकलने से पूर्व उठकर नित्य स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान की प्रतिमा को स्नान करवाकर उन्हें ऊंचे आसन पर विराजमान करें, धूप ,दीप ,नेवैद्य व पुष्प आदि से विधिवत सच्चे मन से उनका पूजन करें। मौसम के अनुसार आम तथा अन्य मीठे फलों का प्रभु को भोग लगाएं। ब्राह्मणों को यथासम्भव भोजन कराएं तथा उन्हें फल आदि के साथ दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। स्वयं किसी प्रकार का अन्न ग्रहण न करें बल्कि फलाहार करें। रात को प्रभु नाम का संकीर्तन करते हुए धरती पर शयन करना चाहिए तथा अपना सारा दिन प्रभु नाम सिमरण में बिताना ही उत्तम कर्म है। अगले दिन यानि द्वादशी को स्नान आदि करके ब्राह्मणों को दक्षिणा सहित दान आदि देकर स्वयं भोजन करें तो प्रभु अति प्रसन्न होते हैं और जीव को सभी प्रकार की सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं।

क्या है पुण्य फल

वैसे तो इस नश्वर संसार में जो मनुष्य शास्त्रों के अनुसार जीवन में आचरण करते हुए सत्कर्म करते हैं और अपना अधिक से अधिक समय प्रभु नाम संकीर्तन में बिताते हुए किसी भी तरह का व्रत आदि के नियमों का पालन करते हैं उन पर प्रभु सदा प्रसन्न रहते हैं परंतु एकादशी तिथि प्रभु को अति प्रिय होने के कारण अति पुण्यफलदायिनी है। 

पुराणों के अनुसार इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। यह एकादशी व्रत जीव के सभी प्रकार के कष्टों,दुखों, संतापों का नाश करने वाला है। किसी प्रकार के मानसिक तनाव को दूर करके मन में सुख-शांति प्रदान करने के लिए यह एकादशी व्रत अमोध अस्त्र है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत की महिमा को पढ़ने तथा सुनने वाले को भी एक हजार गोदान करने के बराबर फल मिलता है। मोहजाल तथा सभी प्रकार के पापों एवं पातकों से छुटकारा पाने के लिए यह व्रत किसी अमृत से कम नहीं है। यह व्रत जीव को उसके निंदित कर्मों के पाप से भी मुक्ति प्रदान करता है तथा इसके प्रभाव से मेरु पर्वत के समान किए गए महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। 

मोहिनी एकादशी व्रत की कथा

सरस्वती नदी के किनारे बसे भद्रावती नगर में द्युतिमान नामक चन्द्रवंशी राजा राज्य करता था तथा उसी नगर में एक धन-धान्य से परिपूर्ण एवं शांत स्वभाव वाला धन पाल नामक वैश्य भी रहता था, जो सदा किसी न किसी पुण्यकर्मों में लगा रहता था। उसने जनहित्त में अनेक कुंए, प्याऊ लगवाएं तथा धर्मशालाएं, मठ एवं बगीचे बनाकर लोगों की अत्याधिक सेवा की। उसने सड़कों के किनारे आम, नीम जामुन आदि के अनेक छायादार पेड़ लगवाएं। भगवान विष्णु जी की कृपा से उसके पांच पुत्र थे। 

जिनमें सुमना, सद्बुद्धि, मेधावी और सुकृति तो अपने पिता के समान बड़े धर्मात्मा थे परंतु धृष्ट बुद्धि अपने नाम के अनुकूल ही बड़ा दुष्ट था। उसका मन सदा ही पापों में लगा रहता था। वह अपने पिता के धन का दुरुपयोग करता रहता था तथा उसने न तो देवी-देवताओं का पूजन किया और न ब्राह्मणों एवं पितरों का कभी आदर-सत्कार किया। एक दिन उसके पिता ने तंग आकर दुखी ह्रदय से उसे उसके दुराचरण के लिए घर से निकाल दिया तब उसके सभी बंधु-बांधवों ने भी उसका परित्याग कर दिया। ऐसे में दुखी होकर वह भूख-प्यास से परेशान होकर इधर-उधर भटकने लगा। 

कहते हैं जब किसी के पुण्य कर्म उदय होते हैं तो उन्हें संतों के दर्शन करने तथा उनके उपदेश सुनने का मौका मिलता है। ऐसे ही किसी पिछले पुण्य कर्म के प्रभाव से धृष्ट बुद्धि घूमते हुए महर्षि कौण्डिल्य जी के आश्रम में जा पहुंचा। तब वैशाख का महीना चल रहा था तथा महर्षि गंगास्नान करके लौट रहे थे। धृष्ट बुद्धि महर्षि के सामने हाथ जोड़कर उनसे अपने दुखों को दूर करने के लिए प्रार्थना करने लगा तो उन्हें उस पर दया आ गई। महर्षि ने उसे मोहिनी एकादशी का व्रत करने को कहा। व्रत के प्रभाव से वह अपने सभी पाप बंधनों से छूट गया तथा अंत में उसे प्रभु का धाम प्राप्त हुआ।  

क्या कहते हैं विद्वान

एकादशी व्रत में रात्रि जागरण की अत्याधिक महिमा है। इसलिए व्रती को चाहिए कि वह रात को धरती पर शयन करें तथा अपना अधिक से अधिक समय प्रभु नाम संकीर्तन में बिताए। यदि कोई यह व्रत नहीं भी कर सकता तो एकादशी के दिन चावल न खाएं तथा न किसी को खाने को दें। इस दिन तुलसी और सूर्यदेव को जल चढ़ाना और तुलसी मंदिर में दीप दान करना अति उत्तम फल दायक है।

मोहिनी एकादशी कहानी, अनुष्ठान और महत्व

मोहिनी एकादशी के बारे में

मोहिनी एकादशी हिंदू लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपवास दिनों में से एक माना जाता है। मोहिनी एकादशी का दिन भगवान विष्णु और उनके अवतार मोहिनी की पूजा करने के लिए मनाया जाता है। भक्त अपने पिछले पापों से छुटकारा पाने के लिए मोहिनी एकादशी व्रत का पालन करते हैं और विलासिता से भरा जीवन जीते हैं।

मोहिनी एकादशी कब है?

हिंदू पंचांग के अनुसार, शुक्ल पक्ष के दौरान वैशाख के महीने में 11 वें दिन (एकादशी तिथि) को मोहिनी एकादशी मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह दिन अप्रैल या मई के महीने में आता है।

मोहिनी एकादशी के अनुष्ठान क्या हैं?

भक्त इस विशेष दिन पर मौन व्रत या कठोर मोहिनी एकादशी व्रत का पालन करते हैं।

प्रेक्षकों को सुबह जल्दी उठने और स्नान करने के पश्चात साफ पोशाक पहनने की आवश्यकता होती है।

मोहिनी एकादशी व्रत की सभी रस्में दशमी (दसवें दिन) की पूर्व संध्या पर शुरू होती हैं।

इस विशेष दिन पर, पर्यवेक्षकों को एक एकल सात्विक भोजन का सेवन करने की आवश्यकता होती है और वह भी सूर्यास्त की अवधि से पहले।

व्रत उस समय तक जारी रहता है जब एकादशी तिथि समाप्त होती है।

मोहिनी एकादशी व्रत के पालन के दौरान, पर्यवेक्षक किसी भी प्रकार के पाप या बुरे काम करने के लिए और झूठ बोलने के लिए भी प्रतिबंधित होते हैं।

व्रत का समापन द्वादशी की पूर्व संध्या पर होता है जो बारहवाँ दिन होता है। सभी व्रतधारियों को अपने व्रत का समापन करने से पहले कुछ दान करने और ब्राह्मणों को भोजन कराने की आवश्यकता होती है।

प्रेक्षकों को रात के दौरान सोने की अनुमति नहीं होती है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अपना पूरा समय मंत्रों को पढ़ने में लगाना चाहिए।

'विष्णु सहस्रनाम' का पाठ करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।

इस विशेष दिन पर, भक्त बड़े उत्साह और असीम भक्ति के साथ भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।

एक बार सभी अनुष्ठान समाप्त हो जाने के बाद, भक्त आरती करते हैं।

मोहिनी एकादशी की पूर्व संध्या पर दान करना अत्यधिक फलदायक माना जाता है। पर्यवेक्षकों को ब्राह्मणों को भोजन, कपड़े और पैसे दान करने चाहिए।

भक्त दान के एक हिस्से के रूप में एक ‘ब्राह्मण भोज ’का आयोजन भी करते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस त्योहार की पूर्व संध्या पर दान और पुण्य करने वाले व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद कभी नरक नहीं जाते हैं।

मोहिनी एकादशी का क्या महत्व है?

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि मोहिनी एकादशी का महत्व सबसे पहले भगवान कृष्ण ने राजा युधिष्ठिर को और संत वशिष्ठ ने भगवान राम को समझाया था।

यदि कोई व्यक्ति मोहिनी एकादशी व्रत को अत्यधिक समर्पण और निष्ठा के साथ रखता है तो फलस्वरूप उसे कई ‘पुण्य’ या ’अच्छे कर्म” प्राप्त होते हैं।

प्राप्त पुण्य एक हजार गायों का दान करने, तीर्थों की यात्रा करने और यज्ञों को करने से प्राप्त होने वाले के बराबर होते हैं।

यह भी माना जाता है कि भक्त जन्म और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाते हैं और मोहिनी एकादशी के व्रत का पालन करके मोक्ष प्राप्त करते हैं।

मोहिनी एकादशी के विस्तृत महत्व को जानने के लिए, भक्त सूर्य पुराण पढ़ सकते हैं।

मोहिनी एकादशी व्रत कथा क्या है?

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, मोहिनी भगवान विष्णु का अवतार रूप थी। समुद्र मंथन के समय, जब अमृत का मंथन किया गया, तो इस बात को लेकर विवाद हुआ कि राक्षसों और देवताओं के बीच अमृत का सेवन कौन करेगा? देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी और इस तरह वे अमृत के बर्तन से राक्षसों का ध्यान भटकाने के लिए मोहिनी नामक एक सुंदर महिला के रूप में प्रकट हुए। इस प्रकार, सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की सहायता से अमृत का सेवन किया। इसीलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। यह वही व्रत है जिसे राजा युधिष्ठिर और भगवान राम ने रखा था।

यह भी देखें: एकादशी माता जी की आरती

मोहिनी एकादशी की किवदंती क्या है?

किंवदंती के अनुसार, एक बार भद्रावती नाम की एक जगह थी जो सरस्वती नदी के पास स्थित थी। राजा धृतिमान जो भगवान विष्णु के एक दृढ़ भक्त थे, इस स्थान पर शासन करते थे। उन्हें पाँच पुत्रों का वरदान प्राप्त था, जिनमें से पाँचवाँ जिसका नाम धृष्टबुद्धि था, वास्तव में बहुत बुरे कामों और अनैतिक कार्यों में शामिल होने वाला पापी था।
यह सब देखकर, राजा धृष्टिमन ने धृष्टबुद्धि का त्याग कर दिया। जीवित रहने के लिए, वह डकैती के कृत्यों में शामिल हो गया। परिणामस्वरूप, उसे राज्य से बाहर निकाल दिया गया। धृष्टबुद्धी एक जंगल में रहने लगा। एक बार जब वह जंगल में भटक रहा था, तो वह ऋषि कौंडिन्य के आश्रम में पहुंचा।
यह वैशाख मास का समय था और ऋषि कौंडिन्य स्नान कर रहे थे। कुछ बूंदें निकल गयीं और धृष्टबुद्धि पर छितरा गयीं। इस वजह से, धृष्टबुद्धि ने आत्म-साक्षात्कार और अच्छी भावना को प्राप्त किया और इस तरह उसने अपने सभी अनैतिक कार्यों पर पछतावा किया। उसने संत से अपने पिछले पापों और बुरे कर्मों से मुक्ति के मार्ग की तरफ जाने के लिए मार्गदर्शन करने का अनुरोध किया।
इसके लिए, ऋषि ने उसे एकादशी व्रत का पालन करने के लिए कहा, जो शुक्ल पक्ष के दौरान वैशाख महीने में पड़ता है ताकि उसे पापों से छुटकारा मिल सके। एकादशी के दिन, धृष्टबुद्धि ने पूरी श्रद्धा के साथ एकादशी व्रत रखा। अंतत: उसके सभी पाप धुल गए और वह विष्णु लोक में पहुंच गया।
उस समय से, यह माना जाता है कि भक्त मोहिनी एकादशी का व्रत करके मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।

मोहिनी एकादशी के लिए कौन से मंत्र हैं?

ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र

विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम्

इस लेख को ध्यानपूर्वक पढ़ें और पढ़ कर इस ज्ञान को अपने तक ही ना रखें इसे अधिक से अधिक शेयर करें ताकि यह ज्ञान सब तक पहुंच सके क्योंकि ज्ञान का दान सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं लाभकारी है

✍आचार्य जे पी सिंह
ज्योतिष, वास्तु विशेषज्ञ एवं एस्ट्रो मेडिकल स्पेशलिस्ट www.astrojp.com,
www.astrojpsingh.com
Mob .9811558158

According to the scriptures, what is the importance of Mohini Ekadashi fast?

By fasting on Mohini Ekadashi in the Shukla Paksha of the month of Vaishakh, where all the wishes are fulfilled, there is no lack of any kind in life due to the blessings of the Lord.  A person who enjoys all the pleasures of the world finally attains the abode of the Lord.  According to the scriptures, Ekadashi Tithi is very dear to God and the place that Ganga gets in the rivers, the same place is given to Ekadashi in fasting.  It is said that those whose wishes are not getting fulfilled due to any reason, if they fast on Ekadashi with a true heart, none of their wishes remain unfulfilled.  For this, one should resolve to fast on Dashami.  Fasting on Ekadashi and worshiping Maa Lakshmi ji after getting up early in the morning on Dwadashi, a man becomes free from all bondages and full of all happiness.

  how to worship

There is a ritual of worshiping Lord Krishna on Mohini Ekadashi.  On this day, get up before sunrise and retire from daily bathing activities, bathe the idol of God and make him sit on a high seat, worship him with true heart with incense, lamp, nevaidya and flowers etc.  Offer mangoes and other sweet fruits to the Lord according to the season.  Feed Brahmins as much as possible and get their blessings by giving them Dakshina along with fruits etc.  Do not take any kind of food yourself, but eat fruits.  One should sleep on the ground chanting the name of the Lord at night and spending the whole day in the name of the Lord is the best deed.  On the next day i.e. on Dwadashi, after taking bath etc., giving food to Brahmins along with dakshina etc., then the Lord is very pleased and gives all kinds of happiness and prosperity to the living being.

  what is virtuous fruit

By the way, in this mortal world, those people who do good deeds by behaving according to the scriptures and follow the rules of any kind of fasting etc. while spending their maximum time in chanting the name of the Lord, the Lord is always pleased with them.  But Ekadashi Tithi is very auspicious because it is very dear to the Lord.

According to Puranas, there is no better fast than this fast.  This Ekadashi fast is going to destroy all kinds of sufferings, sorrows and anger of the living being.  This Ekadashi fast is an infallible weapon to remove any kind of mental tension and provide happiness and peace in the mind.  According to the scriptures, one who reads and listens to the glory of this fast also gets the fruit equivalent to performing a thousand cattle.  To get rid of temptations and all kinds of sins and defilements, this fast is no less than an elixir.  This fast also gives freedom to the soul from the sins of his condemned deeds and with its effect even the great sins committed like Mount Meru are destroyed.

  Story of Mohini Ekadashi fast

In the city of Bhadravati situated on the banks of river Saraswati, there used to rule the Chandravanshi king named Dyutiman and in the same city there lived a Vaishya named Dhanpal, who was always engaged in one or the other virtuous deeds.  He got many wells, drinking water installed in the public interest and served the people a lot by building dharamshalas, monasteries and gardens.  He got many shady trees like mango, neem jamun etc planted along the roads.  By the grace of Lord Vishnu, he had five sons.

In which Sumana, Sadbuddhi, Medhavi and Sukriti were very religious like their father, but Dhrishta Buddhi was very evil according to his name.  His mind was always engaged in sins.  He used to misuse his father's money and he neither worshiped the gods and goddesses nor respected the Brahmins and ancestors.  One day his father got fed up and threw him out of the house with a sad heart for his misbehavior, then all his relatives also abandoned him.  Being sad in such a situation, he started wandering here and there, troubled by hunger and thirst.

It is said that when someone's good deeds rise, he gets a chance to see saints and listen to their teachings.  Similarly, due to the influence of some past good deed, Dhrishta reached the hermitage of Maharishi Kaundilya.  Then the month of Vaishakh was going on and Maharishi was returning after bathing in the Ganges.  Dhrishta Buddhi started praying with folded hands in front of Maharishi to remove his sorrows, then he felt pity on him.  Maharishi asked him to fast on Mohini Ekadashi.  Due to the effect of fasting, he was freed from all his sins and in the end he got the abode of the Lord.

what do scholars say

There is a lot of glory of night awakening in Ekadashi fast.  That's why the fasting person should sleep on the ground at night and spend maximum time chanting the Lord's name.  Even if someone cannot observe this fast, then on the day of Ekadashi, do not eat rice and do not give it to anyone.  Offering water to Tulsi and Suryadev on this day and donating lamp in Tulsi temple is very fruitful.

Mohini Ekadashi Story, Rituals and Significance

About Mohini Ekadashi

Mohini Ekadashi is considered one of the most important fasting days for Hindu people.  Mohini Ekadashi is celebrated to worship Lord Vishnu and his avatar Mohini.  Devotees observe Mohini Ekadashi Vrat to get rid of their past sins and live a life full of luxury.

When is Mohini Ekadashi?

According to the Hindu calendar, Mohini Ekadashi is celebrated on the 11th day (Ekadashi Tithi) in the month of Vaishakh during Shukla Paksha.  As per the Gregorian calendar, this day falls in the month of April or May.

What are the rituals of Mohini Ekadashi?

Devotees observe Maun Vrat or strict Mohini Ekadashi Vrat on this special day.

The observers are required to wake up early in the morning and wear clean clothes after taking a bath.

All the rituals of Mohini Ekadashi Vrat begin on the eve of Dashami (tenth day).

On this particular day, the observers are required to consume a single sattvic meal and that too before the sunset period.

The fast continues till the time when Ekadashi Tithi ends.

During the observance of Mohini Ekadashi Vrat, the observers are prohibited to commit any kind of sin or evil deeds and also to tell lies.

The fast ends on the eve of Dwadashi which is the twelfth day.  All the fasting people are required to make some donation and offer food to the Brahmins before concluding their fast.

The observers are not allowed to sleep during the night.  To please Lord Vishnu, he should spend all his time in reciting mantras.

Reciting 'Vishnu Sahasranamam' is considered highly auspicious.

On this special day, devotees worship Lord Vishnu with great enthusiasm and immense devotion.

Once all the rituals are over, the devotees perform the aarti.

Donating on the eve of Mohini Ekadashi is considered highly fruitful.  The observers should donate food, clothes and money to the Brahmins.

Devotees also organize a 'Brahmin Bhoj' as a part of charity as it is believed that the person who does charity and virtue on the eve of this festival never goes to hell after his death.

What is the significance of Mohini Ekadashi?

According to Hindu mythology, it is believed that the importance of Mohini Ekadashi was first explained by Lord Krishna to King Yudhishthira and Saint Vashishtha to Lord Rama.

If a person observes Mohini Ekadashi Vrat with great dedication and devotion, he/she gets many "punyas" or "good deeds" as a result.

The merits obtained are equivalent to those obtained by donating one thousand cows, traveling to pilgrimages and performing yagyas.

It is also believed that devotees become free from the cycle of birth and rebirth and attain salvation by observing the fast of Mohini Ekadashi.

To know the detailed significance of Mohini Ekadashi, devotees can read Surya Purana.

What is Mohini Ekadashi fasting story?

According to Hindu scriptures, Mohini was an incarnation of the god Vishnu.  At the time of Samudra Manthan, when the nectar was churned, there was a dispute as to who would consume the nectar between the demons and the gods.  The gods sought help from Lord Vishnu and thus he appeared in the form of a beautiful woman named Mohini to distract the demons from the pot of nectar.  Thus, all the deities consumed the nectar with the help of Lord Vishnu.  That is why this day is celebrated as Mohini Ekadashi.  This is the same fast that was observed by King Yudhishthira and Lord Rama.

See also: Ekadashi Mata Ji's Aarti

What is the legend of Mohini Ekadashi?

According to legend, there was once a place named Bhadravati which was situated near the river Saraswati.  King Dhritiman who was a staunch devotee of Lord Vishnu used to rule this place.  He was blessed with five sons, out of which the fifth one named Dhrishtabuddhi was actually a sinner involved in very bad deeds and immoral acts.
Seeing all this, King Dhrishtiman abandoned Dhrishtabuddhi.  In order to survive, he got involved in acts of robbery.  As a result, he was thrown out of the state.  Dhrishtabuddhi started living in a forest.  Once when he was wandering in the forest, he reached the hermitage of Sage Kaundinya.
It was the time of Vaishakh month and sage Kaundinya was taking a bath.  A few drops came out and were scattered on Dhrishtabuddhi.  Because of this, Dhrishtabuddhi attained self-realization and good sense and thus repented all his immoral acts.  He requested the saint to guide him towards the path of liberation from his past sins and bad deeds.
For this, the sage asked him to observe Ekadashi Vrat, which falls in the month of Vaishakh during Shukla Paksha so that he could get rid of sins.  On the day of Ekadashi, Dhrishtabuddhi observed the Ekadashi fast with full devotion.  Ultimately all his sins were washed away and he reached Vishnu Lok.
Since that time, it is believed that devotees can attain salvation by fasting on Mohini Ekadashi.

What are the mantras for Mohini Ekadashi?

Om Namo Bhagavate Vasudevaya Mantra

Vishnu Sahasranama Stotram

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✍ Acharya JP Singh
Astrology, Vastu Specialist & Astro Medical Specialist www.astrojp.com,
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