Why is the Pran Pratishtha of the idol necessary ?
मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा क्यों जरूरी है?
मूर्ति प्रतिष्ठा पंचरात्र आगम शास्त्रों द्वारा निर्धारित वैदिक संस्कारों और मंत्रों का जाप करके एक मूर्ति में भगवान का आह्वान करने का एक अनुष्ठान है। एक नए मंदिर के उद्घाटन के दिन मूर्ति प्रतिष्ठा की जाती है। मूर्ति प्रतिष्ठा एक उत्सव है जो अक्सर एक नगर यात्रा, या सांस्कृतिक जुलूस, और विश्वशांति महा यज्ञ, या विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ जोड़ा जाता है। नगर यात्रा के दौरान, मूर्तियों को सुंदर ढंग से सजी हुई झांकियों पर रखा जाता है जो पूरे शहर में ले जाया जाता है जिसमें मंदिर बनाया जा रहा है। हिंदुओं का मानना है कि मूर्ति प्रतिष्ठा के बाद देवता मूर्ति में प्रवेश करते हैं। मूर्ति केवल एक छवि नहीं बल्कि भगवान का एक जीवित रूप है।
इसलिए जरूरी है देवप्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा
जब भी लोग किसी देवमूर्ति को घर के मंदिर में लाते हैं तो पूरे विधि विधान से इसकी पूजा की जाती है। इस प्रतिमा में जान डालने की विधि को ही प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं। यह मूर्ति को जीवंत करती है जिससे की यह व्यक्ति की विनती को स्वीकार कर सके। प्राण-प्रतिष्ठा की यह परंपरा हमारी सांस्कृतिक मान्यता जुड़ी है कि पूजा मूर्ति की नहीं की जाती, दिव्य सत्ता की, महत् चेतना की, की जाती है। सनातन धर्म में प्रारंभ से ही देव मूर्तियां ईश्वर प्राप्ति के साधनों में एक अति महत्वपूर्ण साधन की भूमिका निभाती रही हैं। अपने इष्टदेव की सुंदर सजीली प्रतिमा में भक्त प्रभु का दर्शन करके परमानंद का अनुभव करता है और शनै: शनै: ईश्वरोन्मुख हो जाता है। देवप्रतिमा की पूजा से पहले उनमें प्राण-प्रतिष्ठा करने की पीछे मात्र परंपरा नहीं, परिपूर्ण तत्त्वदर्शन सन्निहित है।
इसलिए जरूरी है देवप्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा
जब भी लोग किसी देवमूर्ति को घर के मंदिर में लाते हैं तो पूरे विधि विधान से इसकी पूजा की जाती है। इस प्रतिमा में जान डालने की विधि को ही प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं। यह मूर्ति को जीवंत करती है जिससे की यह व्यक्ति की विनती को स्वीकार कर सके। प्राण-प्रतिष्ठा की यह परंपरा हमारी सांस्कृतिक मान्यता जुड़ी है कि पूजा मूर्ति की नहीं की जाती, दिव्य सत्ता की, महत् चेतना की, की जाती है। सनातन धर्म में प्रारंभ से ही देव मूर्तियां ईश्वर प्राप्ति के साधनों में एक अति महत्वपूर्ण साधन की भूमिका निभाती रही हैं। अपने इष्टदेव की सुंदर सजीली प्रतिमा में भक्त प्रभु का दर्शन करके परमानंद का अनुभव करता है और शनै: शनै: ईश्वरोन्मुख हो जाता है। देवप्रतिमा की पूजा से पहले उनमें प्राण-प्रतिष्ठा करने की पीछे मात्र परंपरा नहीं, परिपूर्ण तत्त्वदर्शन सन्निहित है।
कैसे करें देवप्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा
सबसे पहले देव प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान कराएं और इसे साफ मुलायम कपड़े से पोंछ लें।
प्रतिमा को सुंदर वस्त्र पहनाएं व प्रभु की प्रतिमा को स्वच्छ जगह पर विराजित करें।
विविध पुष्पों से शृंगार, चंदन का लेप आदि करके प्रतिमा को इत्र अर्पित करें।
बाद में इनके सम्मुख धुप दीप प्रज्जवलित करें तथा स्तुति, आरती और नैवेद्य अर्पित करकें जिस देवता या देवी की मूर्ति हो, उनके बीज मंत्र का जप विधि से करें।
हर दिन सुबह और शाम को इस क्रम में पूजा करके अपने इष्ट को प्रसन्न करें।
प्राण-प्रतिष्ठा दो प्रकार से होती है। प्रथम चल-तथा द्वितीय अचल। अचल में मिट्टी या बालू से बनी मूर्तियों का आह्वान और विसर्जन किया जाता है किंतु लकड़ी और रत्नयुक्त मूर्ति का आह्वान या विसर्जन करना ऐच्छिक है।
यह समस्त कार्य तभी सफल होते हैं जब प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठित हो अन्यथा सारी पूजा उपासना व्यर्थ हो जाती है। कहा गया है कि जो मनुष्य अप्रतिष्ठित देव प्रतिमा का पूजन नहीं करता है, उसके अन्न को देवता ग्रहण नहीं करते। अत: घर आदि अप्रतिष्ठित प्रतिमा हो तो उसका त्याग कर देना चाहिए।
किस नक्षत्र में किस देवता की प्रतिष्ठा श्रेष्ठ होती है इस संबंध में बताया गया है कि रोहिणी, तीनों उत्तरा, रेवती, धनिष्ठा, अनुराधा मृगशिरा, हस्त, पुनर्वसु, अश्विनी और पुष्य नक्षत्र में विष्णु की, पुष्य, श्रवण और अभिजीत में इंद्र, ब्रह्मा, कुबेर एवं कार्तिकेय की, अनुराधा में सूर्य की, रेवती में गणेश व सरस्वती तथा हस्त और मूल में दुर्गा की प्रतिष्ठा करना श्रेष्ठ रहता है। माहों में चैत्र, फाल्गुन, ज्येष्ठ, वैशाख और माघ समस्त देवताओं को प्रतिष्ठा के लिए उपयुक्त रहते हैं तिथियों में द्वादशी तिथि भगवान विष्णु, चतुर्थी गणेश तथा नवमी तिथि दुर्गा की प्रतिष्ठा के लिए विशेष रूप से निर्धारित की गई है। वारों के लिए कहा गया है कि-
तेजस्विनी क्षेमकृदग्रिहाद विधायिनी स्याद्वनदा दृढा च।
आनंदनकृत कल्पविनाशिनी च सूर्यदिवारेषु भवेत्प्रतिष्ठा।।
अर्थात रविवार को की गई प्रतिष्ठा तेजस्विनी, सोमवार को कल्याण कारिणी, मंगलवार को अग्रिदाह कारिणी, बुधवार को धन दायिनी, वीरवार को बलप्रदायिनी, शुक्रवार को आनंददायिनी, शनिवार को सामर्थ्य विनाशिनी होती है। धर्म ग्रंथों में स्पष्ट कहा गया है कि जो प्रतिमा खंडित हो जाए उसका पूजन नहीं करना चाहिए।
किसी मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा कैसे काम करती है? क्या मंदिरों में मौजूद देवता वास्तव में जीवित हैं और उनके अंदर आत्मा है?
मंदिर में किसी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ ही यह होता है कि उसमें प्राण बस गए हैं। अब यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप उस मूर्ति में प्राणों की अनुभूति करते हैं या नहीं।
शाकाहारी लोग पशुओं को मारकर उनका मांस नहीं खाते क्योंकि वे यह महसूस करते हैं कि जानवरों में भी प्राण होता है। हमारे देश के वनस्पति वैज्ञानिक डॉ जगदीश चंद्र बसु ने तो पेड़ पौधों में भी प्राण की अनुमति की थी। हमारे वेदों में भी पेड़ों और पशुओं की पूजा करने का विधान है।
जो लोग मांसाहारी होते हैं वे पशुओं में प्राणों की अनुभूति नहीं करते और उनका मांस बड़े शौक से खाते हैं। सरकार की रोक के बावजूद, लालची लोग अपनी जमीन को बेचने से पहले, हरे पेड़ों को काटकर उनका कोयला बनाकर बेच देते हैं। उन लोगों के लिए पशुओं और पैरों में प्राण होने का कोई महत्व नहीं है।
इसी प्रकार मंदिर की मूर्ति में भी जो प्राण महसूस करेंगे, उनको वह मूर्ति सजीव प्रतीत होंगी। इस विषय में आपको यह ध्यान देने की बात है कि बड़े मंदिरों में, ख़ासतौर से श्री कृष्ण जी के मंदिरों में, सर्दी में गरम पोशाक पहनाई जाती है और गर्मी में ठंडी पोशाक के साथ साथ कूलर या पंखे भी लगाए जाते हैं । मौसम के अनुसार एक सजीव प्राणी की तरह भोग भी उसी प्रकार का लगाकर उनकी सेवा की जाती है।
यह सब अपनी अपनी भावना का खेल है। मूर्ति को अगर आप प्राण रहित समझेंगे तो आपकी उस मूर्ति के प्रति श्रद्धा होना आवश्यक नहीं है। आपकी श्रद्धा है तो आपको उस मूर्ति को सजीव ही मानना पड़ेगा।
घरों में कुछ लोग लड्डू गोपाल की सेवा पूजा करते हैं। वे एक बच्चे की तरह उनके खाने-पीने की व्यवस्था रखते हैं। राजस्थान में तो कई कहानियां प्रसिद्ध है, जिनमें भगवान स्वयं भोजन को खाते हुए सुना जाता है।
प्राण प्रतिष्ठा पूजा विधि और मंत्र
प्राण प्रतिष्ठा हमेशा शुक्ल पक्ष के मंगलवार को ही करें अथवा स्थिर लग्न और शुभ नक्षत्र में करें।
इस बात का ध्यान रहे कि राहुकाल में प्राण प्रतिष्ठा वर्जित है।
सबसे पहले भगवान की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराएं। अगर पंचामृत नहीं है तो साफ जल, गंगा जल या दूध, दही से स्नान करा सकते हैं।
स्नान कराने के बाद उन्हें वस्त्र पहनाएं।
अब प्रतिमा पर फूल, फल, धूप, नैवेद्य, चंदन, दीप, मिठाई,अक्षत आदि अर्पित करें।
आरती करें।
अपने दायें हाथ में साफ जल लेकर इन मंत्रों का उच्चारण करें-
‘अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वराः ऋषय: ऋग्यजु सामानि छन्दांसि
क्रियामय वपु: प्राणाख्या देवता. आं बीजं ह्रीं शक्तिः क्रौं कीलकम् अस्मिन ( जिन भगवान की मूर्ती स्थापित करनी है उनका नाम) यंत्रे प्राण प्रतिष्ठापने विनियोग।
प्राण प्रतिष्ठा मंत्र
ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हों।।
ॐ क्षं सं हंसः ह्रीं ॐ हंसः – महाप्राणा इहप्राणाः
आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हों – मम जीव इह स्थितः
आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हों – मम सर्वेन्द्रियाणीह स्थितानि
आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हों – मम वाड.मनश्चक्षु: श्रोत्र घ्राण प्राणा इहागत्य सुस्वचिरंतिष्ठन्तु ॐ क्षं सं हंसः ह्रीं ॐ स्वाहा।।
इस लेख को ध्यानपूर्वक पढ़ें और पढ़ कर इस ज्ञान को अपने तक ही ना रखें इसे अधिक से अधिक शेयर करें ताकि यह ज्ञान सब तक पहुंच सके क्योंकि ज्ञान का दान सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं लाभकारी है
✍आचार्य जे पी सिंह
ज्योतिष, वास्तु विशेषज्ञ एवं एस्ट्रो मेडिकल स्पेशलिस्ट www.astrojp.com,
www.astrojpsingh.com
Mob .9811558158
Why is the Pran Pratishtha of the idol necessary?
Murti Pratishtha Pancharatra is a ritual of invoking the deity in an idol by chanting Vedic rites and mantras prescribed by the Agama Shastras. Idol consecration is done on the day of inauguration of a new temple. Murti Pratishtha is a celebration that is often combined with a Nagar Yatra, or cultural procession, and Vishwashanti Maha Yagya, or prayer for world peace. During Nagar Yatra, the idols are placed on beautifully decorated jhankis which are carried throughout the city in which the temple is being built. Hindus believe that the deities enter the idol after idol consecration. Murti is not just an image but a living form of God.
That's why it is important to have a life-consecration of the deity
Whenever people bring an idol to the temple of the house, it is worshiped with full rituals. The method of giving life to this statue is called Pran Pratishtha. This animates the idol so that it can accept one's request. This tradition of Prana-Pratishtha is linked to our cultural belief that worship is not done of idols, but of divine power, of great consciousness. In Sanatan Dharma, from the very beginning, idols of gods have been playing the role of a very important means in the means of attaining God. The devotee experiences ecstasy by seeing the Lord in the beautifully decorated idol of his presiding deity and gradually turns towards God. Before worshiping the deity, there is not just a tradition behind consecrating the deities, but a complete philosophy is embedded in them.
That's why it is important to have a life-consecration of the deity
Whenever people bring an idol to the temple of the house, it is worshiped with full rituals. The method of giving life to this statue is called Pran Pratishtha. This animates the idol so that it can accept one's request. This tradition of Prana-Pratishtha is linked to our cultural belief that worship is not done of idols, but of divine power, of great consciousness. In Sanatan Dharma, from the very beginning, idols of gods have been playing the role of a very important means in the means of attaining God. The devotee experiences ecstasy by seeing the Lord in the beautifully decorated idol of his presiding deity and gradually turns towards God. Before worshiping the deity, there is not just a tradition behind consecrating the deities, but a complete philosophy is embedded in them.
How to consecrate the idol
First of all bathe the idol with pure water and wipe it with a clean soft cloth.
Dress the idol in beautiful clothes and enshrine the idol of the Lord in a clean place.
Offer perfume to the idol by adorning it with various flowers, sandal paste etc.
Later, light incense lamps in front of them and after offering praise, aarti and naivedya, chant the seed mantra of the god or goddess whose idol is there.
Please your favorite by worshiping in this order every morning and evening.
Pran-prestige is of two types. The first mobile and the second immovable. Idols made of clay or sand are invoked and immersed in Achal, but it is optional to invoke or immerse idols made of wood and gems.
All these works are successful only when the life of the idol is established, otherwise all the worship becomes futile. It has been said that the person who does not worship an idol of a deity, his food is not accepted by the gods. Therefore, if there is an unreputable idol in the house etc., then it should be abandoned.
In which constellation, which deity has the best reputation, it has been said that Rohini, all three Uttara, Revati, Dhanishtha, Anuradha, Mrigashira, Hasta, Punarvasu, Ashwini and Pushya Nakshatra have Vishnu, Indra, Brahma in Pushya, Shravan and Abhijeet. It is best to worship Kuber and Kartikeya, Surya in Anuradha, Ganesha and Saraswati in Revati and Durga in Hasta and Mool. In the months of Chaitra, Falgun, Jyeshtha, Vaishakh and Magh, all the deities are suitable for prestige. Among the dates, Dwadashi Tithi has been specifically fixed for the prestige of Lord Vishnu, Chaturthi Ganesh and Navami Tithi Durga. It has been said for the warriors that-
Tejaswini Kshemkridgrihad Vidhayini Syadvnada Durdha Ch.
Anandankrit Kalpavinashini c Suryadivareshu Bhavetpratishtha.
That is, Pratishtha done on Sunday is Tejaswini, Kalyan Karini on Monday, Agridah Karini on Tuesday, Dhandayini on Wednesday, Balpradayini on Thursday, Ananddayini on Friday, Strength Vinashini on Saturday. It is clearly said in the religious scriptures that the idol which is broken should not be worshipped.
How does life consecration work in an idol? Are the deities present in the temples really alive and have a soul inside them?
Prana Pratishtha of an idol in a temple means that life has settled in it. Now it depends on you whether you feel life in that idol or not.
Vegetarians do not kill animals and eat their meat because they feel that animals also have soul. Our country's botanist Dr. Jagdish Chandra Basu had allowed life even in trees and plants. Even in our Vedas, there is a law to worship trees and animals.
Those who are non-vegetarian do not feel life in animals and eat their flesh with great interest. Despite the government's ban, greedy people cut green trees and sell them as charcoal before selling their land. For those people there is no importance of having life in animals and feet.
Similarly, those who feel life in the idol of the temple, that idol will appear to be alive. In this matter, you have to note that in big temples, especially in the temples of Shri Krishna ji, warm clothes are worn in winters and coolers or fans are also installed along with cool clothes in summers. According to the season, like a living creature, they are served by offering the same type of food.
It is all a game of one's own feelings. If you consider an idol to be lifeless, then it is not necessary to have faith in that idol. If you have faith then you will have to consider that idol alive.
Some people worship Laddu Gopal in their homes. He arranges for their food and drink like a child. Many stories are famous in Rajasthan, in which God himself is heard eating food.
Pran Pratishtha Puja Method and Mantra
Always do Pran Pratishtha on a Tuesday of Shukla Paksha or in a stable ascendant and an auspicious constellation.
Keep in mind that life prestige is prohibited in Rahukal.
First of all bathe the idol of God with Panchamrit. If there is no Panchamrit, then you can bathe with clean water, Ganga water or milk, curd.
Dress them after bathing.
Now offer flowers, fruits, incense, naivedya, sandalwood, lamp, sweets, Akshat etc. on the idol.
Do aarti.
Take clean water in your right hand and chant these mantras-
'Asya Shri Pran Pratishtha Mantrasya Brahma, Vishnu, Maheshwara: Rishay: Rigyaju Samani Chandansi
Kriyamaya Vapu: Pranakhya Devta. आं बीजं ह्री शक्तिः क्रौन कीलकम असमिन (name of the God whose idol is to be installed) यंत्रे प्राण प्रतिष्टापने विनियोग.
Pran Pratishtha Mantra
ॐ ओं ह्रीं क्रौन यं रं लं वं शं शं हो।
Om Ksham San Hansah Hree Om Hansah – Mahaprana Ihaprana
Aam Hree Crown Yam Ram Lam Vam Shamsh San Ho – Mam jeev ih sthita:
Aam Hree Kraun Ya Ram Lam Vam Sham San Ho – Mam Sarvendrayanih Sthitani
Om Hree Kraun Ya Ram Lam Vam Shan Shan San Ho - Mam Vad.
Read this article carefully and do not keep this knowledge to yourself after reading, share it as much as possible so that this knowledge can reach everyone because the donation of knowledge is most important and beneficial.
✍ Acharya JP Singh
Astrology, Vastu Specialist & Astro Medical Specialist www.astrojp.com,
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