Karva Chauth: Mythological History


प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। इस साल 13 अक्टूबर को करवा चौथ है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और शाम के समय पूजा करती हैं। रात में चांद को देख कर पूजा के बाद सुहागिन महिलाएं व्रत खोलती हैं। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि जो सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखकर विधि-विधान से पूजा करती हैं, उन्हें अखंड सौभाग्यवी होने का वरदान मिलता है। करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से पहले सरगी खाकर की जाती है। ये सरगी सास अपनी बहू को देती है। ऐसे में आइए जानते हैं करवा चौथ की सरगी क्या है, इसे खाने का क्या महत्व है और सरगी खाने का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा...? 

करवा चौथ : पौराणिक इतिहास, पूजन विधि, महत्व, कथा, मंत्र और इस बार के संयोग

करवाचौथ' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, 'करवा' यानी 'मिट्टी का बरतन' और 'चौथ' यानि 'चतुर्थी'। इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इस त्योहार का इंतजार करती हैं और इसकी सभी विधियों को बड़े श्रद्धा-भाव से पूरा करती हैं। करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है।

करवाचौथ का इतिहास

 बहुत-सी प्राचीन कथाओं के अनुसार करवाचौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

 ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवाचौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।

 मेहंदी का महत्व 

 मेहंदी सौभाग्य की निशानी मानी जाती है। भारत में ऐसी मान्यता है कि जिस लड़की के हाथों की मेहंदी ज्यादा गहरी रचती है, उसे अपने पति तथा ससुराल से अधिक प्रेम मिलता है। लोग ऐसा भी मानते हैं कि गहरी रची मेहंदी आपके पति की लंबी उम्र तथा अच्छा स्वास्थ्य भी दर्शाती है। मेहंदी का व्यवसाय त्योहारों के मौसम में सबसे ज्यादा फलता-फूलता है, खासतौर पर करवा चौथ के दौरान। इस समय लगभग सभी बाजारों में आपको भीड़-भाड़ का माहौल मिलेगा। हर गली-नुक्कड़ पर आपको मेहंदी आर्टिस्ट महिलाओं के हाथ-पांव पर तरह-तरह के डिजाइन बनाते मिल जाएंगे।

 करवाचौथ पूजन

 इस व्रत में भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा-अर्चना करने का विधान है। करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि और सन्तान सुख मिलता है। महाभारत में भी करवाचौथ के महात्म्य पर एक कथा का उल्लेख मिलता है।

 भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ की यह कथा सुनाते हुए कहा था कि पूर्ण श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-सौभाग्य तथा धन-धान्य की प्राप्ति होने लगती है। श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा-चौथ का व्रत रखा था। इस व्रत के प्रभाव से ही अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को पराजित कर विजय हासिल की।

वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया।

 परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।

इसलिए छननी से देखा जाता है करवा चौथ के दिन पति का चेहरा

हिंदू धर्म की महिलाएं पति की लंबी उम्र और सौभाग्य के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं। यह पर्व पति-पत्नी के रिश्ते और विश्वास को मजबूत करता है। द्वापर युग से लेकर कलयुग तक यह पर्व उतनी ही आस्था और विश्वास से मनाया जाता है, जैसे पहले मनाया जाता था। यह सबसे कठिन व्रतों में से एक है। करवा चौथ के व्रत में सुहागन महिलाएं चांद को अर्घ्य देती हैं और छननी से पति का चेहरा देखकर व्रत खोलती हैं। इस पवित्र पूजा में प्रयोग होने वाली हर चीज का अपना अलग महत्व है। इस दिन महिलाएं नई छननी खरदती हैं और पूजा के दौरान सबसे पहले चांद को और फिर पति का चेहरा देखा जाता है। कभी आपने सोचा है आखिर छननी से ही चांद का दीदार क्यों किया जाता है और इसके पीछे का धार्मिक कारण क्या है। आइए जानते हैं कि करवा चौथ की पूजा में सुहागन महिलाएं आखिर छननी से पति का चेहरा क्यों देखती हैं…

जानिए आखिर क्या है इसकी पीछे की वजह

करवा चौथ की पूजा के दौरान सुहागन महिलाएं चंद्रमा को देखने से पहले छननी में सबसे पहले दीपक रखती हैं और फिर चांद का दीदार करती हैं और फिर पति का चेहरा देखती हैं। इसके बाद पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर मिठाई खिलाकर व्रत को पूरा करते हैं। करवा चौथ के व्रत में महिलाएं निर्जल व्रत रखती हैं, इसलिए इसे निर्जला व्रत भी कहा जाता है

करवा चौथ व्रत पूजा के मंत्र... 

* पार्वतीजी का मंत्र - ॐ शिवायै नमः

 * शिव का मंत्र - ॐ नमः शिवाय

 * स्वामी कार्तिकेय का मंत्र - ॐ षण्मुखाय नमः' 

 * श्रीगणेश का मंत्र - ॐ गणेशाय नमः

 * चंद्रमा का पूजन मंत्र - ॐ सोमाय नमः

प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। इस साल 13 अक्टूबर को करवा चौथ है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और शाम के समय पूजा करती हैं। रात में चांद को देख कर पूजा के बाद सुहागिन महिलाएं व्रत खोलती हैं। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि जो सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखकर विधि-विधान से पूजा करती हैं, उन्हें अखंड सौभाग्यवी होने का वरदान मिलता है। करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से पहले सरगी खाकर की जाती है। ये सरगी सास अपनी बहू को देती है। ऐसे में आइए जानते हैं करवा चौथ की सरगी क्या है, इसे खाने का क्या महत्व है और सरगी खाने का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा...? 

करवा चौथ : पौराणिक इतिहास, पूजन विधि, महत्व, कथा, मंत्र और इस बार के संयोग

करवाचौथ' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, 'करवा' यानी 'मिट्टी का बरतन' और 'चौथ' यानि 'चतुर्थी'। इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इस त्योहार का इंतजार करती हैं और इसकी सभी विधियों को बड़े श्रद्धा-भाव से पूरा करती हैं। करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है।

करवाचौथ का इतिहास

 बहुत-सी प्राचीन कथाओं के अनुसार करवाचौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

 ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवाचौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।

 मेहंदी का महत्व 

 मेहंदी सौभाग्य की निशानी मानी जाती है। भारत में ऐसी मान्यता है कि जिस लड़की के हाथों की मेहंदी ज्यादा गहरी रचती है, उसे अपने पति तथा ससुराल से अधिक प्रेम मिलता है। लोग ऐसा भी मानते हैं कि गहरी रची मेहंदी आपके पति की लंबी उम्र तथा अच्छा स्वास्थ्य भी दर्शाती है। मेहंदी का व्यवसाय त्योहारों के मौसम में सबसे ज्यादा फलता-फूलता है, खासतौर पर करवा चौथ के दौरान। इस समय लगभग सभी बाजारों में आपको भीड़-भाड़ का माहौल मिलेगा। हर गली-नुक्कड़ पर आपको मेहंदी आर्टिस्ट महिलाओं के हाथ-पांव पर तरह-तरह के डिजाइन बनाते मिल जाएंगे।

 करवाचौथ पूजन

 इस व्रत में भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा-अर्चना करने का विधान है। करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि और सन्तान सुख मिलता है। महाभारत में भी करवाचौथ के महात्म्य पर एक कथा का उल्लेख मिलता है।

 भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ की यह कथा सुनाते हुए कहा था कि पूर्ण श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-सौभाग्य तथा धन-धान्य की प्राप्ति होने लगती है। श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा-चौथ का व्रत रखा था। इस व्रत के प्रभाव से ही अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को पराजित कर विजय हासिल की।

वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया।

 परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।

इसलिए छननी से देखा जाता है करवा चौथ के दिन पति का चेहरा

हिंदू धर्म की महिलाएं पति की लंबी उम्र और सौभाग्य के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं। यह पर्व पति-पत्नी के रिश्ते और विश्वास को मजबूत करता है। द्वापर युग से लेकर कलयुग तक यह पर्व उतनी ही आस्था और विश्वास से मनाया जाता है, जैसे पहले मनाया जाता था। यह सबसे कठिन व्रतों में से एक है। करवा चौथ के व्रत में सुहागन महिलाएं चांद को अर्घ्य देती हैं और छननी से पति का चेहरा देखकर व्रत खोलती हैं। इस पवित्र पूजा में प्रयोग होने वाली हर चीज का अपना अलग महत्व है। इस दिन महिलाएं नई छननी खरदती हैं और पूजा के दौरान सबसे पहले चांद को और फिर पति का चेहरा देखा जाता है। कभी आपने सोचा है आखिर छननी से ही चांद का दीदार क्यों किया जाता है और इसके पीछे का धार्मिक कारण क्या है। आइए जानते हैं कि करवा चौथ की पूजा में सुहागन महिलाएं आखिर छननी से पति का चेहरा क्यों देखती हैं…

जानिए आखिर क्या है इसकी पीछे की वजह

करवा चौथ की पूजा के दौरान सुहागन महिलाएं चंद्रमा को देखने से पहले छननी में सबसे पहले दीपक रखती हैं और फिर चांद का दीदार करती हैं और फिर पति का चेहरा देखती हैं। इसके बाद पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर मिठाई खिलाकर व्रत को पूरा करते हैं। करवा चौथ के व्रत में महिलाएं निर्जल व्रत रखती हैं, इसलिए इसे निर्जला व्रत भी कहा जाता है

करवा चौथ व्रत पूजा के मंत्र... 

* पार्वतीजी का मंत्र - ॐ शिवायै नमः

 * शिव का मंत्र - ॐ नमः शिवाय

 * स्वामी कार्तिकेय का मंत्र - ॐ षण्मुखाय नमः' 
* श्रीगणेश का मंत्र - ॐ गणेशाय नमः

* चंद्रमा का पूजन मंत्र - ॐ सोमाय नमः

Acharya JP Singh
Astrologer, Vastu Specialist & Astro Medical Specialist
www.astrojp.com,
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Mob .9811558158

Karva Chauth fast is observed every year on the Chaturthi Tithi of Krishna Paksha of Kartik month.  This year, October 13 is Karva Chauth.  On this day, married women observe a Nirjala fast for the long life of their husbands and perform puja in the evening.  After seeing the moon at night, married women break the fast.  There is such a belief in Hinduism that married women who keep fast on Karva Chauth and worship them according to law, they get the boon of being eternally fortunate.  The fast of Karva Chauth is done before sunrise by eating sargi.  This Sargi mother-in-law gives to her daughter-in-law.  In such a situation, let us know what is the Sargi of Karva Chauth, what is the importance of eating it and what will be the auspicious time to eat Sargi...?

Karva Chauth: Mythological History, Worship Method, Significance, Story, Mantra and Coincidences of this Time

The word 'Karva Chauth' is made up of two words, 'Karva' meaning 'earthen pot' and 'Chauth' meaning 'Chaturthi'.  Earthen pots i.e. Karve have been considered of special importance on this festival.  All married women wait for this festival throughout the year and perform all its rituals with great devotion.  The festival of Karva Chauth is a symbol of strong relationship, love and trust between husband and wife.

history of Karva Chauth

According to many ancient stories, the tradition of Karva Chauth is going on since the time of the gods.  It is believed that once a war started between the gods and the demons and the gods were getting defeated in that war.  In such a situation, the deity went to Brahmadev and prayed for protection.  Brahmdev said that to avoid this crisis, the wives of all the deities should observe a fast for their respective husbands and pray sincerely for their victory.

Brahmadev promised that by doing so, the gods would surely win in this war.  All the gods and their wives happily accepted this suggestion of Brahmadev.  According to Brahmadev, on the day of Chaturthi in the month of Kartik, the wives of all the gods kept a fast and prayed for the victory of their husbands i.e. the gods.  His prayer was accepted and the gods won the battle.  Hearing this good news, all the God wives broke their fast and ate food.  At that time the moon had also appeared in the sky.  It is believed that the tradition of fasting Karva Chauth started from this day.

importance of mehndi

Mehndi is considered a sign of good luck.  It is a belief in India that the girl whose hand mehndi is made deeper, she gets more love from her husband and in-laws.  People also believe that deeply engraved Mehndi signifies long life and good health of your husband.  Mehndi business flourishes the most during the festive season, especially during Karva Chauth.  At this time in almost all the markets you will find a crowded atmosphere.  In every street, you will find Mehndi artists making different designs on the hands and feet of women.

karva chauth puja

In this fast, there is a law to worship Lord Shiva Shankar, Mata Parvati, Kartikeya, Ganesha and Moon God.  By listening to the story of Karva Chauth, married women remain happy, they get happiness, peace, prosperity and children happiness in their house.  In the Mahabharata also, there is a mention of a story on the greatness of Karva Chauth.

Lord Shri Krishna, while narrating this story of Karva Chauth to Draupadi, said that by observing this fast with full devotion and method, all sorrows are dispelled and happiness, good luck and wealth are attained in life.  Draupadi also kept the fast of Karva Chauth by following the orders of Lord Krishna.  Due to the effect of this fast, the five Pandavas including Arjuna won the battle of Mahabharata by defeating the army of Kauravas.

Veervati, the married daughter of a Vedadharma Brahmin, observed the fast of Karva Chauth.  According to the rules, she had to eat after moonrise, but her hunger did not go away and she became distraught.  His sister's distraction from her brothers was not noticed and they showed moonrise by spreading beautiful light of fireworks under the guise of Peepal and fed Veeravati.

The result was that her husband immediately disappeared.  The impatient Veeravati kept a fast on every Chaturthi for twelve months and on the day of Karva Chauth, her husband was recovered by her penance.

That is why the face of the husband is seen through the sieve on the day of Karva Chauth.

Women of Hindu religion observe Karva Chauth fast for the long life and good fortune of their husbands.  This festival strengthens the relationship and trust between husband and wife.  From Dwapar Yuga to Kali Yuga, this festival is celebrated with the same faith and belief as it was celebrated earlier.  This is one of the most difficult fasts.  In the fasting of Karva Chauth, married women offer Arghya to the moon and break the fast after seeing the husband's face through a sieve.  Everything used in this holy puja has its own significance.  On this day, women grind new sieves and during the worship, first the moon and then the husband's face are seen.  Have you ever wondered why the moon is visible through a filter and what is the religious reason behind it.  Let us know why in the worship of Karva Chauth, why do married women see the face of their husband through a sieve…

Know what is the reason behind it

During the worship of Karva Chauth, married women first place a lamp in the sieve before looking at the moon and then look at the moon and then see the face of the husband.  After this the husband completes the fast by feeding his wife with water and sweets.  In the fast of Karva Chauth, women keep a waterless fast, hence it is also called Nirjala Vrat.

Mantras of Karva Chauth Vrat Puja...

* Mantra of Parvatiji - Om Shivay Namah

* Mantra of Shiva - Om Namah Shivaya

* Mantra of Swami Kartikeya - Om Shanmukhay Namah.

* Mantra of Lord Ganesha - Om Ganeshaya Namah

* Moon worship mantra - Om Somay Namah

Acharya JP Singh
Astrologer, Vastu Specialist & Astro Medical Specialist
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